परिवहन विभाग, झारखंड पुलिस और सहयोगी संस्थाओं के संयुक्त प्रयास से सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में कमी तो आई है, परंतु मरने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। गृह विभाग की हालिया चार वर्षों की रिपोर्ट ऐसा बयां कर रही है। सरकार की नजर में नेशनल और स्टेट हाइवे पर ऐसे 197 ब्लैक स्पॉट हैं, जहां सर्वाधिक हादसे होते हैं। सुप्रीम कोर्ट की सड़क सुरक्षा समिति आज से नहीं विगत कई वर्षों से राज्य सरकारों को सुरक्षा के मानकों पर सड़कों को कसने की हिदायत दे रही है। समिति की तल्खी पर झारखंड सरकार ने 2020 तक इन हादसों में 50 फीसद तक की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इससे इतर ऐसे मामलों से निपटने के लिए सरकार के अबतक के प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य सड़क सुरक्षा परिषद की पिछले दिनों हुई बैठक में चर्चा का यह मुख्य केंद्र था। सरकार का मानना है कि सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने का यह कार्य विभागों के आपसी तालमेल से ही संभव है। समिति का मानना है कि शिक्षा विभाग को अगर प्रारंभिक कक्षा से ही बच्चों को सड़क सुरक्षा से अवगत कराना चाहिए, तो शिक्षकों के प्रशिक्षण माड्यूल का भी इसे हिस्सा बनाना चाहिए। पथ निर्माण विभाग को सड़कों के निर्माण से पूर्व सड़क सुरक्षा के अंकेक्षण के अलावा चालकों का ध्यान भटकाने वाले होर्डिंग्स को हटाने, स्पेशलिस्ट रोड सेफ्टी यूनिट का गठन करना चाहिए। गृह विभाग को इसी कड़ी में सीसीटीवी, स्पीड कैमरा, ई-चालान आदि का प्रयोग कर यातायात प्रबंधन प्रणाली को आधुनिक बनाने तथा 24 घंटे एसएमएस अलर्ट सर्विस बहाल करने का सुझाव दिया है तो परिवहन विभाग को सभी फिटनेस सेंटर और चालक प्रशिक्षण केंद्रों की आडिट सुनिश्चित करने करने तथा ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने से पूर्व आवेदक के स्किल को हर स्तर पर जांचने की सलाह दी है। इसी कड़ी में स्वास्थ्य विभाग को हर 50 किलोमीटर की दूरी पर ट्रामा सेंटर स्थापित करने तथा प्रत्येक एक लाख की आबादी पर प्रशिक्षित चिकित्सक और पारा मेडिकल स्टाफ युक्त एंबुलेंस की व्यवस्था करने का टास्क सौंपा है। बहरहाल समिति और परिषद की नसीहत के बाद इस मामले में संबंधित विभागों की सक्रियता बढ़ी है। आवश्यकता है इस सख्ती को बरकरार रखने के लिए एक ऐसी एजेंसी के गठन की जो सड़क सुरक्षा में जुटे विभागों के क्रियाकलापों की सतत मानिटङ्क्षरग करे।
---
हाईलाइटर :
सरकार का मानना है कि सड़क हादसों में कमी लाने का कार्य विभागों के तालमेल से ही संभव है। 2020 तक हादसों में 50 फीसद तक कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित हुआ है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]