पटना राजधानी है, इसलिए यहां की यातायात व्यवस्था के प्रति लापरवाही बरतना कतई उचित नहीं। हालांकि राज्य के दूसरे बड़े शहरों में भी जाम और यातायात की समस्या विकट होती जा रही है। सूबे के बड़े जिलों में शुमार मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, बेगूसराय, भोजपुर, वैशाली, छपरा, सिवान आदि में भी जाम और यातायात की र्दुव्‍यवस्था से लोग आजिज हो चुके हैं, इस कारण दुर्घटनाएं भी होती हैं। राजधानी पटना में पिछले कुछ सालों के दौरान फ्लाईओवर के जाल और वैकल्पिक मार्गो की बदौलत बाहरी यातायात व्यवस्था को कुछ हद तक नियंत्रित करने में प्रशासन को सफलता मिली है, लेकिन शहर के अंदर हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं। सड़कें तो चौड़ी की जाती हैं, परंतु उनपर पटरी दुकानदारों का कब्जा बना रहता है।

एक दिक्कत और है कि अधिकतर व्यस्त इलाकों पर सड़क किनारे फुटपाथ की व्यवस्था ही खत्म हो गई है, पार्किंग न होने से जरूरी सामानों की खरीदारी करने वाले सड़कों पर ही वाहन खड़ा करने को मजबूर हैं। सड़कों पर बेतरतीब ढंग से वाहनों के खड़े हो जाने से बड़ी गाड़ियां फंस जाती हैं और इससे घंटों जाम लग जाता है। यातायात व्यवस्था के अवरोधकों में सभी जिलों में अलग यातायात पुलिसिंग का न होना भी है। अधिकतर जिलों में यह काम सिविल पुलिस के जिम्मे है जो अपने मूल दायित्वों से पहले ही ओवरलोडेड है। गुरुवार को पटना हाईकोर्ट ने राजधानी की ट्रैफिक समस्या पर फिर संज्ञान लिया है। नगर निगम और राज्य सरकार से इस मामले में चार सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है।

एक याचिका पर मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने स्पष्ट तौर पर यह जानना चाहा है कि राजधानीवासियों को आखिर कब तक भीड़ और जाम से राहत मिलेगी। इससेपहले भी अदालत इस मसले पर कई बार सरकार और प्रशासन से सख्ती से पेश आई है, लेकिन समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही। अदालत को बताया गया है ट्रैफिक और जाम की समस्या के बढ़ने का कारण प्रशासन, विद्युत, विभाग व नगर निगम के अधिकारियों के बीच तालमेल का न होना है।

[स्थानीय संपादकीय : बिहार]