भारतीय प्रधानमंत्री की छह दिनों में पांच देशों की यात्रा में हर देश के दौरे का अपना महत्व था, लेकिन यह स्पष्ट ही है कि अमेरिका की यात्रा पर सभी की निगाह थी। शायद इसलिए और भी, क्योंकि वह दो साल के अंदर चौथी बार अमेरिका जा रहे थे और इस दौरान उन्हें अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को भी संबोधित करना था। इस संबोधन के दौरान उन्होंने सचमुच समां बांध दिया। नि:संदेह वह एक दुर्लभ दृश्य था जब उसी अमेरिकी संसद में सांसद नरेंद्र मोदी के सम्मान में बार-बार खड़े होकर करतल ध्वनि कर रहे थे जिसने कुछ बरस पहले उनकी अमेरिका यात्रा पर रोक लगाई थी। उनका भाषण केवल प्रभावशाली ही नहीं था, बल्कि उसमें नीतिगत स्पष्टता और भारत की वैश्विक भूमिका की भावी रूपरेखा भी थी। उन्होंने जिस तरह अमेरिका को अनिवार्य सहयोगी बताया और अतीत के असमंजस से बाहर निकलने की जरूरत जताई उससे यही स्पष्ट हुआ कि वह उस दौर से आगे बढऩा चाहते हैं जब अमेरिका को भारत के स्वाभाविक सहयोगी की संज्ञा दी गई थी। वैसे तो यह पहले भी कहा जा चुका है कि समृद्ध और सबल भारत अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया के हित में है, लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री ने यह बात कहीं अधिक जोरदार तरीके से कही। यह शायद पहली बार है जब भारतीय नेतृत्व की ओर से यह साफ तौर पर रेखांकित किया गया कि भारत दक्षिण एशिया और एशिया ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी प्रभावी भूमिका का निर्वहन करने के लिए तैयार है और वह भी हर क्षेत्र में। शायद यही कारण रहा कि उन्होंने अपने भाषण में हर उस बात का जिक्र किया जिनकी चर्चा विश्व मंचों पर होती रहती है।

यह समय ही बताएगा कि अमेरिका भारतीय प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को किस रूप में ग्रहण करता है और इस यात्रा के दौरान जो समझौते हुए उनका क्रियान्वयन समय रहते सही ढंग से होता है या नहीं, लेकिन यह तय है कि भारत में अमेरिका का निवेश बढऩे जा रहा है। इसी के साथ इसके प्रति भी आश्वस्त हुआ जा सकता है कि अमेरिका भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी एनएसजी की सदस्यता दिलाने के लिए अपने स्तर पर और अधिक सक्रियता का परिचय देगा। नि:संदेह यह एक कठिन कार्य है, क्योंकि चीन अडिय़ल रवैया अपनाए हुए है। इसके बावजूद इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारत का मिसाइल टेक्नालॉजी कंट्रोल रिजीम का सदस्य बनना तय हो गया है। इसके परिणाम स्वरूप भारत को आधुनिक मिसाइल तकनीक की खरीद में सहूलियत होगी और वह एक निश्चित दूरी तक मार कर सकने वाली मिसाइलों का निर्यात भी कर सकेगा। साफ है कि इससे भारत की दुनिया के अन्य देशों तक पहुंच भी बढ़ेगी और उसका कद भी बढ़ेगा। यह ठीक है कि चीन को यह रास नहीं आ रहा कि भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और उसका कद बढ़ता चला जा रहा है, लेकिन वह जिस तरह पाकिस्तान का समर्थन करने में लगा हुआ है उससे खुद उसके लिए अपनी छवि को बनाए रखना मुश्किल हो गया है। प्रधानमंत्री ने अमेरिकी कांग्रेस में पाकिस्तान का नाम लिए बगैर उसे जिस तरह आतंकवाद का पोषक राष्ट्र बताया और समुद्री क्षेत्र में चीन के दादागीरी भरे रवैये की ओर संकेत किया उससे यह स्पष्ट हुआ कि अब भारत उन बाधाओं को पार करने के लिए तैयार है जिनके प्रति वह अभी तक हिचकिचाहट का परिचय देता रहा है।

[ मुख्य संपादकीय ]