एशिया की सबसे बड़ी परीक्षा संस्था उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की हाईस्कूल और इंटर की परीक्षाओं के परिणाम का सुखद पक्ष यह है कि इस बार गांवों की मेधा शहरों पर भारी नजर आई है। यह संकेत है कि गांव के किसान भी अब शिक्षा का महत्व समझने लगे हैं और इससे भी अहम बात यह है कि बेटियों की शिक्षा पर भी वे काफी ध्यान दे रहे हैं। इस बार की परीक्षा सिर्फ इसलिए ही नहीं याद रखी जाएगी कि फतेहपुर जैसे छोटे जिले की दो बेटियों ने हाईस्कूल और इंटर दोनों में बाजी मारी, बल्कि इसलिए भी कि श्रेष्ठता सूची में उनका वर्चस्व है। परीक्षाफल में गिरावट जरूर आयी है लेकिन, उसके कई कारण हो सकते हैं।

संभव है कि सरकार बदलने के बाद हुई सख्ती ने भी परिणाम को प्रभावित किया हो, जैसा कि अधिकारी दावे कर रहे हैं। वैसे यह बहस का विषय हो सकता है कि क्या सफलता के प्रतिशत को केंद्र में रखकर मेधा को आंकना चाहिए। कभी यही बोर्ड था जिसमें साठ प्रतिशत अंक पाना चुनौती माना जाता और उस समय इसके पाठ्यक्रम को देश के सभी शैक्षिक बोर्ड में उत्कृष्ट माना जाता था। व्यवस्था के नजरिए से भी इस बार यूपी बोर्ड की सराहना की जा सकती है। लगभग 55 लाख परीक्षार्थी इसमें शामिल हुए जो कि संख्या के हिसाब से समानांतर सभी बोर्ड को मिलाने के बाद दोगुने से भी अधिक है। इतनी बड़ी संख्या में छात्रों की परीक्षा, उनका मूल्यांकन और परिणाम तैयार करने में कुछ व्यवस्थागत दोष जरूर सामने आए लेकिन, पिछले सालों की तुलना में कम।

यदि मामूली घटनाक्रमों को छोड़ दें तो इस बार की परीक्षा अनियमितताओं को लेकर अधिक चर्चा का विषय नहीं बनी। इसके बावजूद कुछ चीजें सालती हैं। यूपी बोर्ड में हंिदूी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है लेकिन, साढ़े सात लाख छात्र इसमें पास न हो सके। निश्चित रूप से इसके लिए छात्रों को कम और उनके शिक्षक और परिवार को अधिक दोषी माना जाना चाहिए। इंटर में भी बड़ी संख्या में छात्र सफल हुए हैं और अब उनकी चिंता उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश की होगी। प्रदेश सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा।

(स्थानीय संपादकीय उत्तर प्रदेश)