सरकार अस्पतालों में दवाएं उपलब्ध कराने के लिए करोड़ों रुपये बजट देती है, इसके बावजूद गरीब मरीजों को दवाएं क्यों नहीं मिलतीं? यह गुत्थी अब सुलझ गई है। सरकारी अस्पतालों की दवाएं ड्रग माफिया की मिलीभगत से निजी मेडिकल स्टोरों पर पहुंचा दी जाती हैं, जहां मरीज अपने खेत, आभूषण और घर बेचकर महंगी कीमत पर दवाएं खरीदते हैं। पिछले दिनों पुलिस की गिरफ्त में आए ड्रग माफिया ने स्वीकार किया कि पीएमसीएच के कर्मचारी उसे अस्पताल की दवाएं सप्लाई करते थे जिसे वह निजी मेडिकल स्टोरों के जरिए ऊंची कीमत पर बिकवाता था। यानी पीएमसीएच में गरीब मरीजों के लिए जो दवाएं आती हैं वे अस्पताल के बाहर मेडिकल स्टोरों पर भेज दी जाती हैं।

यह खुलासा पीएमसीएच के बारे में हुआ हे। तय है कि राज्य के बाकी सरकारी अस्पतालों में भी यह धंधा चल रहा होगा। इससे पहले भी कई बार गोविंद मित्र रोड के दवा बाजार में छापे डालकर सरकारी अस्पतालों की दवाएं पकड़ी जा चुकी हैं लेकिन किसी भी मामले में कड़ी कार्रवाई नहीं की गई। मौजूदा खुलासे के बाद भी पीएमसीएच या किसी अन्य अस्पताल के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी पर शिकंजा नहीं कसा गया। गरीब मरीजों की जीवन रक्षा के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली दवाएं निजी मेडिकल स्टोरों को बेच दी जाएं, मानवता के प्रति इससे अधिक क्रूर अपराध क्या हो सकता है?

अपराध संहिता तैयार करते समय ऐसे अपराधों की कल्पना नहीं की गई होगी। राज्य सरकार को चाहिए कि इसके लिए कड़ा कानून बनाया जाए। यह जांच का विषय है कि ठोस प्रमाण के बावजूद पीएमसीएच के अधिकारियों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी अब तब निर्धारित क्यों नहीं की गई? जो कर्मचारी इतने गंभीर अपराध के आरोपी हैं वे अब तक अपनी उन्हीं सीटों पर काम कैसे कर रहे हैं? उन्हें पुलिस के हवाले क्यों नहीं किया गया? जाहिर है कि ड्रग माफिया के हाथ लंबे हैं। इसका काला कारोबार सालों से ड्रग प्रशासन की जानकारी में था। इसके बावजूद लंबे समय तक उस पर हाथ नहीं डाला गया। यह अत्यधिक संवेदनशील विषय है जिसकी जांच संजीदगी के साथ करके दोषी व्यक्तियों पर कानून का शिकंजा कसा जाना चाहिए।

[बिहार संपादकीय]