भूगर्भीय दृष्टि से उत्तरकाशी बेहद संवेदनशील जोन-चार व पांच में स्थित है। यहां कई बार भूकंप तबाही मचा चुके हैं।
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राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले को भूकंपरोधी मॉडल के लिए चुना है। इसके तहत जिले में होने वाले सभी सरकारी निर्माण कार्य भूकंपरोधी होंगे। साथ ही पुराने सरकारी भवनों की भी भूकंपरोधी तकनीक से मरम्मत की जाएगी। महत्वपूर्ण यह कि उत्तरकाशी देश का पहला जिला है, जिसे मॉडल जिले के रूप में चयनित किया गया है। असल में भूगर्भीय दृष्टि से उत्तरकाशी बेहद संवेदनशील जोन-चार व पांच में स्थित है। यहां कई बार भूकंप के कारण तबाही मच चुकी है। जबकि, छोटे-बड़े झटके समय-समय पर महसूस किए जाते रहे हैं। बावजूद इसके जिले में अनियोजित ढंग से विकास जारी रहा और वर्तमान में भी इस पर अंकुश लगाने को कोई ठोस पहल होती नजर नहीं आ रही रही है। जिले में गंगोत्री-यमुनोत्री जैसे देश के प्रमुख धार्मिक स्थल मौजूद हैं। इनमें हर साल लाखों यात्री दर्शनों को पहुंचते हैं और इसी यात्रा पर जिले की बड़ी आबादी की आर्थिकी भी टिकी हुई है। इसी के चलते यात्रा रूटों पर अनियोजित निर्माणों की बाढ़ सी आ गई है। गंगोत्री-यमुनोत्री तक में कई-कई मंजिल ऊंचे होटल खड़े कर दिए गए हैं। ऐसे में जिले का भूकंपरोधी मॉडल के लिए चयन किया जाना निश्चित रूप से दूरदृष्टिपूर्ण कदम माना जाना चाहिए। इस योजना को तीन साल के भीतर धरातल पर उतरना है। ताकि ग्रामीण भी सरकारी भवनों की तरह अपने भवनों का निर्माण करें और भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए जागरूक हों। इससे भूकंप आने की स्थिति में नुकसान को न्यून किया जा सकेगा। प्रोजेक्ट में सरकारी भवनों के साथ पुलों को भी शामिल किया गया है। इस सारे परिदृश्य में यह भी याद रखना जरूरी है कि उत्तरकाशी जिले का भूकंपरोधी मॉडल के रूप में चयन होने का मतलब यह कतई नहीं कि पहाड़ के अन्य जिले भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील नहीं हैं। ठीक है कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का फोकस उत्तरकाशी पर होगा, लेकिन प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह गढ़वाल-कुमाऊं के अन्य पर्वतीय में ऐसी ही ठोस पहले करे। ताकि वहां भी जब ऐसी पहल हो तो उसके लिए पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार मिले। खासकर चमोली, रुद्रप्रयाग व पिथौरागढ़ जिलों में इस तरह की पहल अविलंब शुरू की जानी चाहिए। कारण इन जिलों में भी वैसी ही परिस्थितियां हैं, जैसी कि उत्तरकाशी में। दैवीय आपदाएं आना यहां सामान्य बात है। खासकर, रुद्रप्रयाग व चमोली तो उत्तरकाशी की ही तरह चारधाम यात्रा का केंद्र भी हैं। बदरीनाथ व केदारनाथ जैसे विश्व प्रसिद्ध धाम इन्हीं दो जिलों में हैं। यहां भी प्राकृतिक नियमों की अनदेखी कर अनियोजित ढंग से निर्माण हो रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि यहां भी व्यापक स्तर पर भूकंपरोधी तकनीक को उपयोग में लाया जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]