भारतीय क्रिकेट टीम के कोच पद से अनिल कुंबले का त्यागपत्र उनके और कप्तान विराट कोहली के बीच अनबन की खबरों की पुष्टि करने के साथ ही यह भी स्पष्ट कर रहा है कि दोनों के बीच संबंध सुधार की कथित कोशिश सफल नहीं हुई। हैरत नहीं कि ऐसी कोई कोशिश हुई ही न हो और क्रिकेट बोर्ड ने कप्तान विराट कोहली की हां में हां मिलाना ही बेहतर समझा हो। वैसे भी यह किसी से छिपा नहीं कि कुंबले और कोहली के बीच अनबन की खबर क्रिकेट बोर्ड के ही एक पदाधिकारी ने लीक की। चूंकि यह काम चैंपियंस ट्रॉफी के ठीक पहले किया गया इसलिए इस आशंका को बल मिलता है कि क्रिकेट बोर्ड न केवल अनिल कुंबले को नीचा दिखाना चाहता था, बल्कि वह इससे भी बेपरवाह था कि एक प्रतिष्ठापूर्ण मुकाबले के दौरान कोच और कप्तान के बीच खटपट की बातें सार्वजनिक होने से भारतीय क्रिकेटरों की टीम भावना पर बुरा असर पड़ सकता है। पता नहीं सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त क्रिकेट प्रशासकों की समिति इस मसले को देखेगी या नहीं, लेकिन इससे बुरी बात और कोई नहीं हो सकती कि कोई क्रिकेट बोर्ड अपनी ही टीम के हितों को नुकसान पहुंचाने का काम करे। फिलहाल यह कहना कठिन है कि कोच और कप्तान के बीच मतभेद के क्या कारण थे और वे दूर होने के बजाय संवादहीनता के स्तर तक क्यों पहुंच गए, लेकिन यह सामान्य बात नहीं कि कुंबले जैसा प्रतिष्ठित क्रिकेटर एक साल से कम समय में ही कोच की अपनी जिम्मेदारी छोड़ने का फैसला करे। चूंकि कुंबले ऐसा करने को विवश हुए इसलिए इस नतीजे पर पहुंचना सहज ही है कि क्रिकेट बोर्ड ने कप्तान विराट कोहली को जरूरत से ज्यादा अहमियत दी। सच्चाई जो भी हो, यह समझने की जरूरत है कि कोई कप्तान कितना भी करिश्माई क्यों न हो वह खेल और खासकर साझा भारतीयता का पर्याय बन गए क्रिकेट सरीखे खेल से बड़ा नहीं हो सकता।
अनिल कुंबले का इस्तीफा यह भी बता रहा है कि न तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में सब कुछ ठीक है और न क्रिकेट टीम में। इसका एक प्रमाण चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भारतीय टीम के बेहद खराब खेल से भी मिला। नि:संदेह खेल में हार-जीत लगी रहती है और कई बार बड़े खिलाड़ी अथवा अजेय नजर आने वाली टीम भी पराजय का सामना करती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय टीम के बेहद खराब खेल की अनदेखी कर दी जाए। चूंकि भारतीय टीम बुरी तरह पराजित हुई और एक अकेले हार्दिक पांड्या को छोड़कर बाकी सबने दोयम दर्जे का प्रदर्शन किया इसलिए यह स्वाभाविक है कि टीम इंडिया के प्रशंसक ओवल के मैदान में मिली अप्रत्याशित हार को पचा नहीं पा रहे हैं। उन्हें हार से ज्यादा इसका मलाल है कि टीम ने लड़ने का जज्बा दिखाने के बजाय हथियार डालने का काम किया। वह दिन भारतीय टीम का नहीं था, ऐसे किसी जुमले से भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को इसलिए दिलासा नहीं मिलने वाली, क्योंकि यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कोच और कप्तान के बीच की खटास ने किसी न किसी स्तर पर भारतीय टीम के मनोबल और उसकी एकजुटता को प्रभावित करने का काम किया।

[ मुख्य संपादकीय ]