परस्पर दो विरोधी राजनीतिक दलों (माकपा और कांग्रेस) में सीटों का बंटवारा कहें या चुनावी तालमेल! दोनों दलों के शीर्ष स्तर के नेता इसे औपचारिक रूप से गठबंधन मानने को भी तैयार नहीं हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि सीटों का बंटवारा भी 100 प्रतिशत नहीं हुआ है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी के गढ़ मुर्शिदाबाद में 22 में से 10 सीटों पर दोनों दलों ने एक-दूसरे के विरुद्ध उम्मीदवार उतार दिए हैं। दोनों दलों के कुछ नेता इसे दोस्ताना लड़ाई करार दे रहे तो वाममोर्चा के घटक दल के नेता कांग्रेस पर गठबंधन के नियमों के उल्लंघन का आरोप लगा रहे हैं। मुर्शिदाबाद में 22 विधानसभा क्षेत्र में 10 पर दोनों दलों में सहमति नहीं हुई है। इनमें पांच सीटों पर आरएसपी, चार पर माकपा और एक पर फॉरवर्ड ब्लॉक का उम्मीदवार है। कांग्रेस द्वारा भी इन दसों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर बंगाल और दक्षिण बंगाल में भी कुछ सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है। लगभग एक दर्जन सीटों पर जहां दोनों दलों में सहमति नहीं बन पाई है वहां दोस्ताना लड़ाई की बात कही जा रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी और वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस का कहना है कि जिन सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है वहां दोस्ताना लड़ाई होगी। कांग्रेस और माकपा दोनों राज्य से तृणमूल शासन का अंत चाहते हैं। इसी कारण दोनों दल एक-दूसरे के करीब आए हैं, हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर माकपा और कांग्रेस एक-दूसरे के विरुद्ध हैं। केरल में माकपा और कांग्रेस एक-दूसरे के विरुद्ध प्रतिद्वंद्विता कर रही हैं। दरअसल राज्य में सीटों का बंटवारा ही विरोधाभास से शुरू हुआ। कांग्रेस को माकपा 294 में मात्र 65 सीटें देना चाहती थी, लेकिन प्रदेश कांग्रेस दबाव बढ़ाते-बढ़ाते आधिकारिक रूप से 75 से 80 सीटें हासिल करने में सफल हो गई। बाद में लगभग एक दर्जन और सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतार दिया और इन सीटों पर दोस्ताना लड़ाई होने की बात कही। स्थानीय स्तर पर दोनों दलों के नेता और कार्यकर्ता गठबंधन कर चुनाव लड़ने के पक्ष में थे। अधिकांश क्षेत्रों में दोनों दलों के नेता और कार्यकर्ता साझा प्रचार भी कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक दर्जन सीटों पर सहमति नहीं बनी तो वह कोई मायने नहीं रखता है। मुर्शिदाबाद कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता, जहां अधीर चौधरी का खासा प्रभाव है। अधीर अपने प्रभाव से गठबंधन से बाहर जाकर 10-12 सीटें जीतने की उम्मीद करते हैं और इसलिए वहां दोस्ताना लड़ाई की बात कह रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि कांग्रेस और माकपा का गठबंधन चुनाव जीतता है तो सत्ता में कांग्रेस अपनी दखल मजबूत करेगी। ज्यादा स्थिति मजबूत होने पर कांग्रेस मुख्यमंत्री पद की मांग भी कर सकती है।

[स्थानीय संपादकीय- पश्चिम बंगाल ]