शुक्र है कि प्रदेश में कई जगहों पर भारतीय किसान यूनियन की तरफ से हाईवे पर जाम लगाने के दौरान कुछ अप्रिय नहीं घटा। हालांकि उन यात्रियों के लिए तो यह कष्टदायक रहा ही जो धूप और गर्मी के बीच घंटों जाम के कारण बेहाल रहे। किसान नेताओं को उनकी भी परेशानी समझनी चाहिए कि जिन लोगों को उनकी वजह से परेशानी उठानी पड़ रही है, उनमें से ज्यादातर किसान परिवारों के ही होंगे। उनका आंदोलन सरकार के खिलाफ है तो वह सरकार पर अपने गुस्से की सजा अपने ही परिवार के लोगों को, आम जन को क्यों दे रहे हैं? उन्हें प्रदेश के प्रमुख विरोधी दलों इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और कांग्रेस से सबक लेना चाहिए। वे भी किसानों की कर्जमाफी और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू किए जाने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए इनेलो ने जहां प्रदेश के हर जिला मुख्यालय पर धरना दिया, वहीं कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कुरुक्षेत्र के लघु सचिवालय पर प्रदर्शन किया। जाहिर है कि इससे आमजन को कोई परेशानी नहीं होगी और किसानों की बात भी दोनों दल सरकार तक पहुंचा देंगे। सिर्फ इनेलो व कांग्रेस ही नहीं ऐसा सभी राजनीतिक दल करते हैं। इस मुद्दे पर घिरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित सभी दलों को यह भी सोचना चाहिए कि ऐसे वादे कर सत्ता में न आएं जिसे पूरा न कर सकें। भाजपा जब विपक्ष में थी तो स्वामीनाथन आयोग को लागू करने की मांग कर रही थी। पाटी के किसान मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में हरियाणा के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ के नेतृत्व में उसके कार्यकर्ता प्रदेश भर में जबरदस्त प्रदर्शन करते थे। अब किसान संगठन और विरोधी दल उसी का हवाला दे रहे हैं। यह ठीक है कि खुद स्वामीनाथन भाजपा की किसानों संबंधी नीतियों की प्रशंसा कर रहे है, लेकिन यह भी सच है कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग करने वाली भाजपा खुद इसे नहीं लागू कर पा रही है। इसमें और किसानों का कर्ज माफ करने में क्या दिक्कते हैं, इस बारे में भाजपा सरकार को किसान संगठनों से बात करनी चाहिए और आंदोलन के उग्र होने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। यदि सरकार और किसान संगठन समस्या के समाधान के लिए ईमानदारी से बात करेंगे तभी बात बनेगी।

 स्थानीय संपादकीय- हरियाणा