हरियाणा प्रदेश के समृद्ध प्रदेशों में गिना जाता है, लेकिन यह भी सत्य है कि प्रदेश का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। यह चिंताजनक है। इतने बड़े स्तर पर बच्चे यदि कुपोषित होंगे तो भविष्य में हम कहां खड़े होंगे? भले ही आज हमारे युवा खेल से लेकर सीमा तक अपने पराक्रम का प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन वे प्रदेश की कुल आबादी का तीन फीसद भी तो नहीं है। इसलिए प्रदेश सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए। नेशनल फेमिली हेल्थ की लगभग साल भर पहले आई रिपोर्ट में जानकारी दी गई थी कि प्रदेश के हर तीसरे बच्चे का वजन उसकी औसत उम्र के मुताबिक कम होता है। एक अन्य रिपोर्ट तो बताती है कि 39.6 फीसद बच्चों का वजन कम होता है। इस संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहले ही प्रदेश सरकार को सचेत कर चुका है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि सरकार को कुपोषित बच्चों की बढ़ती संख्या की जानकारी नहीं है।
वैसे पूर्ववर्ती कांग्र्रेस सरकार ने सन 2013 में प्रदेश के 11 जिलों में कुपोषित बच्चों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाने की योजना बनाई थी। लेकिन उसने भी समस्या को उतनी गंभीरता से नहीं लिया, जितनी गंभीरता से लेना चाहिए था। चार जिलों में ये केंद्र शुरू ही नहीं हो सके, जबकि होना यह चाहिए था कि ऐसे केंद्र हर जिले में बनाए जाते। जो चल रहे हैं, उनकी भी स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसमें तो कोई संदेह ही नहीं है कि ऐसे बच्चे आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों के ही होते हैं, पर बहुत से बच्चे सामान्य आय वर्ग के भी होते हैं। यदि उच्च मध्यम आय वर्ग या उच्च आय वर्ग के परिवारों की बात छोड़ दें तो उन परिवारों के बच्चों को भी यथोचित आहार नहीं मिल पाता, जो सामान्य बोलचाल में खाते-पीते परिवारों के कहे जाते हैं। वैसे भी हर बच्चा देश का भविष्य है, अच्छा पोषण उसका अधिकार है और उसको उसका अधिकार मिले यह सुनिश्चत करना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन, प्रदेश सरकार ने अभी तक इस दिशा में न तो कोई गंभीर प्रयास किए हैं और न ही कोई योजना बनाई है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]