हर छोटी बात पर अदालत का दरवाजा खटखटाने की बजाय सामाजिक स्तर पर मध्यस्थता के माध्यम से मामलों का निपटारा ही बेहतर न्याय है।
-----

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट समेत पंजाब की सभी निचली अदालतों में बड़ी संख्या में मुकदमे लंबित हैं। आमतौर पर माना जाता है कि इसका कारण अदालतों में न्यायाधीशों की कमी है मगर एक सच्चाई यह भी है कि प्रदेश के लोग छोटी-छोटी बातों को तूल देकर अदालत का दरवाजा खटखटा देते हैं। इससे अदालतों में मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है, जबकि ऐसे केसों का निपटारा थोड़ी सी सूझबूझ से स्थानीय स्तर पर हो सकता है। विशेष कर ग्राम पंचायतें सक्रिय हो जाएं व सकारात्मक पहल करें तो अदालतों पर से मुकदमों का बोझ कम किया जा सकता है। कहावत है, न्याय में विलंब भी एक तरह से अन्याय ही है। न्याय प्रणाली पर इस वजह से अक्सर अंगुलियां उठाई जाती रही हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में करीब 3.25 लाख मुकदमे लंबित हैं। पंजाब की निचली अदालतें भी करीब 5.35 लाख मुकदमों का बोझ ढो रही हैं। इतनी बड़ी संख्या में मुकदमे लंबित रहने से लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है। इसकी एकमात्र वजह न्यायाधीशों की कमी नहीं है, बल्कि छोटी-छोटी बातों पर लोगों में बढ़ रही मुकदमेबाजी की प्रवृत्ति भी है। गत दिनों पंजाब यूनिवर्सिटी के लीगल स्टडीज विभाग में मीडिएशन पर आयोजित कार्यक्रम में हाईकोर्ट के जस्टिस महेश ग्रोवर ने भी इसी ओर इशारा किया था। उन्होंने कहा कि हर छोटी बात पर अदालत का रुख नहीं करना चाहिए, बल्कि सामाजिक स्तर पर मध्यस्थता के माध्यम से मामले को निपटा लेना चाहिए। यही सबसे अच्छा न्याय है। इसमें समाज का प्रबुद्ध वर्ग बड़ी भूमिका निभा सकता है। पंजाब की बड़ी आबादी आज भी गांवों में है। ऐसे में ज्यादातर मुकदमे गांवों से अदालत तक पहुंच रहे हैं। अदालतों में मुकदमों का बोझ कम करने में ग्राम पंचायतें भी खासी भूमिका निभा सकती हैं। अगर 50 फीसद मुकदमे भी ग्राम पंचायत स्तर पर निपटा दिए जाते हैं तो स्वत: प्रदेश की अदालतों पर से मुकदमों का बोझ कम हो जाएगा और लोगों को समय पर न्याय भी मिल सकेगा। सरकार को भी चाहिए कि ग्राम पंचायतों को सक्रिय करे और शहरों में समाज के प्रबुद्ध लोगों को प्रेरित करे ताकि छोटे-छोटे मुकदमे स्थानीय स्तर पर मध्यस्थता करके निपटाए जा सकें।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]