हरित प्रदेश में यह क्या हो रहा है? कहीं जमीन व कहीं मामूली सी कहासुनी व लेनदेन में एक-दूसरे की जान लेने में जुटे हैं। पिछले दो माह में एक के बाद एक हुई हत्याओं ने कानून विशेषज्ञों के साथ समाजशास्त्रियों ने भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। हम आपसी सौहार्द व सामंजस्य को लगातार खोते जा रहे हैं। कैथल में दस फीट जमीन के लिए भाई की हत्या कर दी गई और चरखीदादरी में जमीन के लिए दो परिवार एक-दूसरे के दुश्मन बन गए। रेवाड़ी में नृशंसता से युवक को मार डाला गया। यह कानून-व्यवस्था के लिए चिंता का विषय तो है ही, उससे भी बड़ा विषय सामाजिक चिंतन का भी है। ऐसा प्रतीत होता है कि हम बेवजह गुस्से में हैं और उस गुस्से में हम सही और गलत का फर्क भी नहीं समझ पा रहे हैं।
समाजशास्त्री और मनोविज्ञानी बदले हालात के लिए सामाजिक विद्वेष और बढ़ते तनाव को जिम्मेवार बता रहे हैं। पिछले कुछ साल से प्रदेश आंदोलनों व सामाजिक तौर पर उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। महिलाओं के मुद्दों ने भी सामाजिक बदलाव की गति को तेज किया है। ऐसे में आमजन तेजी से हो रहे बदलाव से शायद भ्रमित सा हो गया है। पिछले बरसों में सियासत ने सामाजिक संस्थाओं के वजूद को काफी प्रभावित किया है। फिर से बदलाव की डोर थामनी होगी। खापों को भी शिक्षा, सामाजिक सरोकार व महिलाओं के मसलों पर और अधिक सक्रियता बढ़ानी होगी। बदलते सामाजिक परिवेश में इन संगठनों की जिम्मेवारी और बढ़ जाती है। सरकार व प्रशासन को भी सामाजिक सहभागिता बढ़ाने के कार्यक्रम चलाने होंगे। खेल हरियाणा में धर्म की श्रेणी पा चुका है। ऐसे में खेल प्रतियोगिताओंसे युवाओं की भागेदारी बढ़ा दी जाए तो समाज में तनाव तो कम होगा ही रचनात्मकता का भी विकास होगा। हमारे युवा खेलों के दम पर दुनिया भर में मिसाल कायम कर रहे हैं। बस इसी जज्बे को और गति देने की आवश्यकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]