------दरअसल हर बार कोई हादसा होने पर सख्ती के दावे तो किये जाते हैं पर एक-दो दिन रस्म अदायगी के बाद ब्रेक लग जाता है। -------दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उच्चतम न्यायालय, बाल संरक्षण आयोग और सीबीएसई की गाइड लाइन को स्कूल संचालकों ने इस साल भी पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। प्रवेश प्रकिया को अंतिम चरण में ले जाते हुए नए शैक्षणिक सत्र की तैयारी भी तेज कर दी। तमाम बड़े स्कूलों तक में वाहनों के सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है। प्रशासन, पुलिस, शिक्षा विभाग और परिवहन विभाग जिन पर गाइड लाइन का सख्ती से पालन कराने की जिम्मेदारी है, वही बच्चों के जीवन से खिलवाड़ होते देख रहे हैं। एटा में स्कूल बस-ट्रक भिड़त में बीस नौनिहालों की मौत और चालीस के घायल होने जैसी बड़ी दुर्घटनाओं के समय अपवाद को छोड़कर पूरे सूबे में सरकारी तंत्र कुछेक दिन के लिए ही सही, कभी जागा हो, याद नहीं पड़ता। हर रोज बड़ी संख्या में स्कूली बसें, वैन आदि सुरक्षा के तमाम बिंदुओं को ताख पर रखकर दौड़ती हैं, पर इनकी जांच के नाम पर परिवहन विभाग को सांप सूंघ जाता है। दरअसल हर बार कोई हादसा होने पर सख्ती के दावे तो किये जाते हैं पर एक-दो दिन रस्म अदायगी के बाद ब्रेक लग जाता है। कार्रवाई के नाम पर खानापूरी करने वाले प्रशासन के पास बचाव के कई कुतर्क हमेशा रहते हैं। पर यह कभी नहीं दिखता कि ऐसे अवैध और अधिकांश खटारा वाहनों से जीवन के लिए तो खतरा है ही, सरकार को भी हर साल कई करोड़ का घाटा होता है। इन वाहनों के संचालक भेड़-बकरियों की तरह बच्चों को ढोकर खासी कमाई कर रहे हैं, पर बच्चों का बीमा कराने से इन्हें परहेज है। अधिकांश वाहन बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं या एक रजिस्ट्रेशन पर कई-कई वाहन दौड़ाए जा रहे हैं। न फिटनेस पर ध्यान है न गति सीमा का पालन। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इसके लिए जिम्मेदार विभागों के बीच कोई सतत संवाद या समन्वय है ही नहीं। कभी संयुक्त प्रयास तक नहीं किया जाता। यातायात पुलिस मुंह फेर लेती है, परिवहन विभाग मूकदर्शक बना रहता है और बाकी विभाग तो शुतुरमुर्ग की प्रवृत्ति का परित्याग ही नहीं करना चाहते। नया शिक्षण सत्र अगले माह से शुरू हो जाएगा। नई सरकार से उम्मीद है कि वह स्कूलों, वाहन संचालकों पर सख्ती के लिए अपने तंत्र को न केवल जगाएगी बल्कि जवाबदेही भी तय करेगी। स्कूली वाहनों में सुरक्षा और संसाधन के पर्याप्त उपाय सुनिश्चित करने के लिए वृहद अभियान चले और तय समय सीमा में इस अभियान की गहन समीक्षा भी हो।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]