यात्री वाहनों में निर्धारित क्षमता से अधिक सवारियों को ले जाने के कारण सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। जरूरी है कि सरकार व परिवहन विभाग इस पर सख्ती करते हुए व्यापक अभियान चलाए।

प्रदेश में लगातार बढ़ रहे सड़क हादसे चिंता का विषय हैं। जिस प्रकार एक के बाद एक सड़क हादसे हो रहे हैं, उससे कहीं न कहीं विभागीय कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं। शनिवार को कालसी और रुद्रप्रयाग में जो दो वाहन हादसे हुए, दोनों में ही वाहन ओवरलोडेड थे। कालसी के नागथात में जो मैक्स वाहन खाई में गिरा, उसमें 21 लोग सवार थे, जबकि इस वाहन की क्षमता दस यात्रियों की होती है। यह घटना इसलिए भी गंभीर है क्योंकि तकरीबन दस दिन पहले ही त्यूणी के निकट एक ओवरलोडेड बस खाई में गिर गई थी, जिसमें 45 यात्रियों की जान चली गई थी। इस दुर्घटना के बाद सरकार व शासन-प्रशासन ने ओवरलोडिंग पर अंकुश लगाने के तमाम दावे किए लेकिन व्यवस्था पटरी पर नजर नहीं आई। कालसी और रुद्रप्रयाग में हुई दुर्घटनाओं ने इनके दावों को आइना दिखाया है। सरकार और शासन को इस बात को समझना होगा कि प्रदेश में चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है। देश-विदेश से यात्री चारधाम दर्शनों के लिए आते हैं। इस तरह की घटनाएं उनके मन में असुरक्षा का भाव पैदा करती हैं। इससे अन्य राज्यों में भी गलत संदेश जाता है। वाहन दुर्घटना के मामलों पर नजर डालें तो ओवरलोडिंग की समस्या केवल गढ़वाल मंडल की ही नहीं है, कुमाऊं मंडल में भी हालात बहुत अधिक जुदा नहीं हैं। यहां भी पर्याप्त सरकारी बसों के अभाव में यात्री निजी यात्री वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं। सीमित वाहन संख्या के कारण ओवरलोडिंग एक आम समस्या बन गई है। सब कुछ देखते बूझते हुए भी परिवहन विभाग इससे नजरें चुराए हुए है। पर्वतीय मार्गों में अभी तक सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम न होने के कारण भी हादसों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। सरकार को इस तरह के मामलों को बेहद गंभीरता से लेने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि दुर्घटना आशंकित क्षेत्रों को सुरक्षा से मजबूत करने की दिशा में कदम उठाए जाएं। इसके लिए पैराफिट व सेफ्टी वॉल बनाए जाने चाहिए। इसके अलावा तमाम पर्वतीय मार्गों पर ओवरलोडिंग के खिलाफ व्यापक अभियान चलाए जाने की जरूरत है। सरकार को समझना होगी कि यदि इस ओर सख्ती नहीं की गई तो इस प्रकार के हादसों पर लगाम लगाना खासा मुश्किल हो जाएगा।

[  स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]