-----केवल एक सिपाही यदि कई लोगों को काबू कर पाता है तो अपनी वर्दी की धमक के कारण। -----जनप्रतिनिधि और नौकरशाह में परस्पर समन्वय जितना बेहतर होगा, उनके क्षेत्र में जनहित के कार्य उतनी ही अच्छी तरह से हो सकेंगे। एक को जनता चुनती है और दूसरा वर्षों की मेहनत के बाद बड़ी परीक्षा उत्तीर्ण करता है और तब कहीं शीर्ष प्रशासनिक पद तक पहुंच पाता है। दोनों की अपनी जिम्मेदारियां हैं लेकिन, आखिरकार तो उनकी जवाबदेही जनता के प्रति ही है। उनके मतभेद सार्वजनिक होंगे तो लाभ वे निहित स्वार्थ उठाएंगे जो ऐसे ही अवसर की ताक में रहते हैं। गोरखपुर में यही हुआ जहां मुख्य मुद्दे पीछे रह गए और सामने आ गया एक स्थानीय विधायक और महिला आइपीएस के बीच का विवाद। विवाद तूल पकड़ गया है और दोनों ही पक्ष अपनी बात पर डटे हैं। विधायक का आरोप है कि वह महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए हो रहे एक प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे जिसमें आइपीएस ने अनावश्यक दखल दिया। उधर महिला अधिकारी का कहना है कि वह तो भीड़ के बीच अपने सीनियर अधिकारी का समर्थन पाकर भावुक हो गई थीं।अधिकारी की भावुक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो उनके समर्थन में लोग उतर पड़े। भाजपा विधायक पुराने डाक्टर हैं और उन्होंने भी पार्टी में अपना पक्ष रखा है। हो सकता है विधायक अपनी जगह सही हों लेकिन, इतनी बड़ी भीड़ के बीच उन्हें अधिकारी पर नाराजगी जाहिर करने से बचना चाहिए था। उन्हें कोई शिकायत थी तो वह यह बात में भी कह सकते थे। वैसे यह पहला मामला नहीं है। सहारनपुर में उपद्रव के बाद कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं ने पहले कमिश्नर की गाड़ी पर पथराव किया और फिर एसएसपी के घर में तोड़फोड़ की। उनके यहां लगे सीसीटीवी कैमरे तोड़े गए और गाड़ी में भी तोड़फोड़ की गई। इस मामले ने भी तूल पकड़ा। इसी तरह की छोटी-मोटी और भी घटनाएं हुई हैं जिन्होंने फिलहाल प्रदेश की कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह भले ही न लगाया हो लेकिन, यह संकेत तो दिया है कि सब कुछ ठीक नहीं है। केवल एक सिपाही यदि कई लोगों को काबू कर पाता है तो अपनी वर्दी की धमक के कारण। उसकी यह धमक बनी रहनी चाहिए।

 [ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]