बागपत को प्रदेश के अति पिछड़े जिलों में से एक माना जाता है। मेरठ से अलग होकर नए जिले के रूप में अस्तित्व में आए इसे 20 साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन, अपना रोडवेज बस अड्डा तक नहीं है। प्रशासनिक भवन एक-एक कर तैयार हो रहे हैं। इन बाधाओं के बावजूद इस जिले ने जो कर दिखाया, वह मिसाल है। जिले का गांव मीतली प्रदेश का पहला कैशलेस गांव बन गया है। लगभग आठ हजार की आबादी वाले इस गांव में कॉमन सर्विस सेंटर (जनसेवा केंद्र) में 610 ग्रामीण तथा 21 दुकानदार पंजीकृत हैं जो कि कैशलेस विकल्प अपना रहे हैं। गांव के युवा लगभग सारे काम कैशलेस करने लगे हैं।

इस गांव की यह पहली उपलब्धि नहीं है। इससे पहले इस गांव का एक इंजीनियर ई-मीतली वेबसाइट और ई-एलान जैसे एप दे चुका है, जिसके माध्यम से लोगों को न केवल गांव की सारी गतिविधियों की जानकारी घर बैठे ही हो जाती है, बल्कि देश दुनिया की सारी गतिविधियों से भी वे अवगत होते रहते हैं। गांव ने अगला कदम कैशलेस की ओर बढ़ाया और इस लक्ष्य को हासिल भी कर लिया। यूं तो प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया की शुरुआत एक जुलाई 2015 को की थी लेकिन, इसके तहत कैशलेस सोसाइटी अभियान ने वास्तविक रूप से जोर पकड़ा विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद।

नोटबंदी मुख्य रूप से कालेधन और उससे होने वाले नुकसान पर अंकुश के लिए थी, क्योंकि कालेधन से न केवल कर संग्रह प्रभावित हो रहा था, बल्कि भ्रष्टाचार, अपराध और आतंकवाद भी फल-फूल रहे थे। कैशलेस अर्थव्यवस्था से ऐसी तमाम समस्याओं से एक झटके में निजात मिल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब डिजिटल इंडिया अभियान की शुरुआत की थी, तब कहा था कि, ‘मैं ऐसे डिजिटल भारत का सपना देखता हूं जहां हाई स्पीड डिजिटल हाईवे देश को एक करता है।’ देश को डिजिटल इंडिया बनाने का सपना प्रधानमंत्री ने संभवत: ऐसे ही गांवों और लोगों को ध्यान में रखकर देखा होगा। सामान्य तौर पर डिजिटल इंडिया का मकसद तकनीक के जरिए आम आदमी का जीवन सरल बनाते हुए सरकार से उनकी दूरी को कम करना है। फिलहाल, एक पिछड़े जिले के गांव ने देश के सामने बड़ी लकीर खींच दी है, अब देश के बड़े बड़े महानगरों और सुशिक्षित व तकनीकी रूप से सुसज्जित समाज के सामने यह चुनौती है कि वे इस ‘अल्ट्रा मॉडर्न विलेज’ से क्या सबक ले पाएंगे।

(स्थानीय संपादकीय उत्तर प्रदेश)