तृणमूल सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक बार फिर केंद्र के विरोध में उतर गई हैं। उन्होंने प्रस्तावित वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआइ) विधेयक पर कड़ी आपत्ति जताई है। हालांकि इस बार उन्होंने विरोध का लोकतांत्रिक तरीका अपना है। उन्होंने एफआरडीआइ विधेयक को अन्याय और अनैतिक करार दिया है और संसद में इसे पेश नहीं करने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखा है। संसदीय व्यवस्था में पत्र लिखकर विरोध जताना लोकतांत्रिक और शालीन तरीका माना जाता है। लेकिन इसमें भी मुख्यमंत्री ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया है उस पर सवाल खड़ा होता है। उन्होंने एफआरडीआइ विधेयक को अन्याय और अनैतिक बताया है। केंद्र या राज्य में किसी भी बहुमत की सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। यदि विपक्ष किसी विधेयक से सहमत नहीं है तो उसे असहमति जताने का भी अधिकार है। लेकिन इसके लिए जो लोकतांत्रिक और संसदीय व्यवस्था है उसी के तहत शालीन तरीके से विरोध किया जाना चाहिए। एफआरडीआइ विधेयक में बहुत सारी खामियां हो सकती है। लेकिन जो विधेयक संसद में पेश हो चुका है और विचार के लिए उसे स्थायी समिति के हवाले किया जा चुका है उसे अन्याय और अनैतिक बताना कहां तक उचित है।
किसी भी विधेयक में सुधार और संशोधन की पूरी गुंजाइश होती है। विपक्ष असहमत होने पर संसद में संशोधन प्रस्ताव दे सकता है। लेकिन किसी भी विधेयक को अन्याय और अनैतिक बताने का मतलब उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा कर देना है। सरकार को भी चाहिए कि आम जनता के व्यापक हित को ध्यान में रख कर ही कानून बनाए। जनता का हित प्रभावित होने पर विपक्षी दलों को विरोध करने मौका मिल जाता है। विरोध करने में में विपक्षी दल नैतिकता की सीमा भी लांघ जाते हैं। इसलिए सरकार को विपक्ष को इस तरह विरोध करने का मौका नहीं देना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि एफआरडीआइ विधेयक 2017 के कुछ बिंदुओं पर गहरा विवाद है। लोगों में यह धारणा बन रही है कि इस तरह के कानून लागू होने पर बैंकों में आम जनता की जमा राशि सुरक्षित रहने पर सवालिया निशान लग जाएगा। अगर सचमुच इस तरह की स्थिति है तो केंद्र सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए ताकि ममता या अन्य किसी विपक्षी नेता को ऐसी भाषा में विरोध करने का मौका न मिल सके।
हाईलाइटर (किसी भी विधेयक में सुधार और संशोधन की पूरी गुंजाइश होती है। विपक्ष असहमत होने पर संसद में संशोधन प्रस्ताव दे सकता है।)

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]