मानव संसाधन मंत्रालय ने केंद्रीय स्तर पर इंजीनियरिंग की परीक्षा आयोजित करने का जो निर्णय किया है उस पर राज्य सरकार ने आपत्ति जताई है। शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिख कर केंद्रीय स्तर पर इंजीनियरिंग के लिए एक ही परीक्षा आयोजित करने के निर्णय पर पुनर्विचार करने की मांग की है। मानव संसाधन मंत्रालय ने 2018 के लिए सभी इंजीनियरिंग कालेजों के लिए एक ही परीक्षा आयोजित करने का निर्णय किया है। चटर्जी का कहना है कि इस तरह का एकतरफा निर्णय संघीय ढांचा पर आघात है। शिक्षा क्षेत्र समवर्ती सूची में आता है। लेकिन इस तरह का निर्णय करने से पहले केंद्र ने राज्य सरकार को विश्वास में नहीं लिया। यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में केंद्र का हस्तक्षेप है। चटर्जी ने यह भी तर्क दिया है कि में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए राज्य में संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेइइ) के लिए बोर्ड है जो 40 वर्षों से परीक्षा आयोजित करता रहा है। जेइइ की विश्वसनीयता पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर सकता है।
शिक्षा मंत्री का तर्क अपनी जगह कुछ हद तक सही है लेकिन केंद्र के किसी निर्णय का खुलेआम विरोध करने का कोई औचित्य नहीं है। हालांकि तर्कसंगत ढंग से अपना पक्ष रखा जा सकता है लेकिन इस तरह के केंद्र को निर्णय संघीय ढांचा पर आघात और राज्य के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप बताना उचित नहीं है। पूरे देश के लिए केंद्रीय स्तर पर कोई नियम बनता है तो इसमें गलत क्या है? इससे तो राज्यों को ही अलग से परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी से मुक्ति मिल जाएगी। राज्य का एक बोझ भी हल्का हो जाएगा। जहां तक सवाल है राज्यों में अलग-अलग बोर्ड और अलग-अलग पाठ्यक्रम होने का तो इसका भी कोई तुक नहीं है। प्रतियोगी परीक्षाएं वैसे भी किसी एक पाठ्यक्रम पर आधारित नहीं होती है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं के लिए जो निजी शिक्षण संस्थान तैयारी करवाते हैं उनमें सभी छात्रों को निर्धारित पाठ्यक्रम के तहत ही पढ़ाई करनी पड़ती है। प्रति वर्ष हजारों छात्र ऐसे शिक्षण संस्थान से तैयारी कर मेडिकल और इंजीनियरिंग के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षाएं उत्तीर्ण करते हैं। राज्य सरकार को हर मामले में केंद्र के फैसले को संघीय ढांचा पर आघात बताने की आदत छोड़ कर सकारात्मक ढंग से सोचना चाहिए।
(पूरे देश के लिए केंद्रीय स्तर पर कोई नियम बनता है तो इसमें गलत क्या है? इससे तो राज्यों को ही अलग से परीक्षा आयोजित करने की जिम्मेदारी से मुक्ति मिल जाएगी)

 [ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]