बस में युवतियों से छेड़छाड़ करने के अभियुक्त उन तीन युवकों को अदालत से आखिर न्याय मिल ही गया, जिनकी पिटाई कर कथित बहादुर बहनों ने देश भर में वाहवाही लूटी थी। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब युवकों की पिटाई का वीडियो वायरल हो गया था। छेड़छाड़ के आरोप लगाकर सुर्खियां बटोरने वाली बहनें गलत साबित हुईं। निर्भया कांड के बाद प्रदेश में महिलाओं से छेड़छाड़ व दुष्कर्म के मामले मीडिया में लगातार सुर्खियों का हिस्सा बने और पुलिस व अदालतों ने भी ऐसे मामलों में सक्रियता दिखाई। संसद ने भी कड़ा कानून बना दिया। इसी का फायदा उठाकर कुछ असामाजिक तत्व दुष्कर्म व छेड़छाड़ की शिकायतों के बहाने भयादोहन करने लगे। कुछ जगहों पर तो ऐसे संगठित गिरोह भी पुलिस की पकड़ में आए। अदालत के इस फैसले पुलिस को सीख लेनी चाहिए कि किसी को पहली नजर में अभियुक्त न मानें और पहले सभी तथ्यों भली भांति पड़ताल कर ले। यह न्यायसंगत और तर्कसंगत भी। इससे निर्दोष बदनामी के दंश से बच जाएंगे। भले ही अब अदालत से तीनों युवकों को न्याय मिल गया है, लेकिन इस ढाई साल में उन्होंने कई अवसर खो दिए। समाज में खोया सम्मान पाने के लिए भी उन्हें लड़ाई लड़नी होगी। साथ ही रोजगार के बेहतर अवसर उसके हाथ से निकल गए। एक युवक का सेना के लिए चयन अंतिम स्टेज पर था, लेकिन विवादों में नाम आने के बाद सेना ने उनका नाम सूची में नहीं रखा। अब अदालत से दोषमुक्त होने के बाद अपने जीवन की इस लड़ाई को आगे बढ़ाना होगा। निश्चित तौर पर पूरा घटनाक्रम दुखद रहा, पर सोशल मीडिया पर दोनों पक्षों ने जिस तर एक-दूसरे के चरित्र हनन और कीचड़ उछालने का उपक्रम किया वह और भी दुखद था। इस कारण यह मामला लगातार सुर्खियों में रहा। अब चिंता यह है कि अदालती लड़ाई खत्म होने के बाद फिर से सोशल मीडिया पर वही पुराना दौर शुरू न हो जाए, इसके लिए कड़ी निगरानी की आवश्यकता है। उन युवकों का फिर से समाज में सम्मान बहाल हो, यह भी सुनिश्चित करना सबका दायित्व है। अपेक्षा करें कि कड़वी यादों को भूल वह जीवन के नए अध्याय की शुरुआत कर पाएंगे। समाज को भी इसके लिए प्रयास करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]