नौकरी से बेदखल वायरलेस ऑपरेटर्स का तवी पुल पर प्रदर्शन के दौरान आत्मदाह किए जाने का प्रयास दु:खद है। पुलिस महकमे में सात साल तक अपनी सेवाएं देने वाले करीब 231 मुलाजिमों को सरकार ने बेदखल तो कर दिया लेकिन यह नहीं सोचा कि इनका भविष्य क्या होगा? विभाग को चाहिए था कि जब उन्होंने वर्ष 2017 में वायरलेस ऑपरेटर के पद सार्वजनिक किए थे, तो स्पष्ट करना चाहिए था कि यह पद डिस्टिक्ट के आधार पर नहीं, बल्कि स्टेट काडर के तौर पर भरे जाएंगे।

पुलिस विभाग में इन पदों की भरपाई डिस्टिक्ट काडर पर तो कर दी गई, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह चयन स्टेट काडर पर हो। विभाग ने अपनी गलती को दुरुस्त कर नए वायरलेस ऑपरेटर्स की भर्ती तो कर ली लेकिन डिस्टिक्ट काडर के वायरलेस ऑपरेटर्स को बाहर का रास्ता दिखा कर उनसे अन्याय किया। बेहतर होता इन ऑपरेटर्स को बेदखल करने के बजाए उन्हें भी इसी पद बनाए रखते, क्योंकि ये सभी शारीरिक मापदंड के बाद लिखित और साक्षात्कार जैसी सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद ही भर्ती हुए थे। सात साल बाद उन्हें नौकरी से बेदखल करने का कोई औचित्य नहीं है। हद तो यह है कि निकाले गए कुछ कर्मचारी उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गए हैं, जहां उन्हें अब दूसरी नौकरी नहीं मिल सकती।

अब उनके पास अपनी आवाज बुलंद करने का कोई दूसरा विकल्प भी नहीं बचा है। इसमें कोई शक नहीं कि कर्मचारियों को अब अपने परिवार की फिक्र सता रही है। सरकार को भी चाहिए कि वह बीच का रास्ता निकाल कर इनको पुलिस महकमे में समायोजित करे, क्योंकि इनमें से कई ऑपरेटर उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। जहां तक संभव हो उनकी सेवा पुलिस विभाग में किसी दूसरे पदों पर भी ली जा सकती है। इन वायरलेस ऑपरेटर्स ने भी वैसा ही प्रशिक्षण प्राप्त किया है जैसा कि पुलिसकर्मियों को दिया जाता है। वायरलेस ऑपरेटर्स को भी चाहिए कि वे सब्र से काम लें। सरकार को भी चाहिए की उनकी मांगों पर प्राथमिकता से कोई फैसला ले। रोज-रोज सड़कों पर प्रदर्शन सही नहीं है। 

[जम्मू कश्मीर संपादकीय]