झारखंड में सरकारी क्षेत्र के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल रांची स्थित रिम्स अपनी सेवा के लिए जितना जाना जाता है, अव्यवस्था के लिए यह उतना ही अधिक निशाने पर रहता है। खासकर जनप्रतिनिधि और कुछ नौकरशाह अक्सर इसकी आलोचना करते हैं। यह नहीं मामा से काना मामा की तरह नहीं है, फिर भी सुधार की गुंजाइश तो है ही। इस बीच दो दिन पहले एक महिला को रिम्स कॉरिडोर में फर्श पर भोजन परोसे जाने की घटना का सरकार के साथ-साथ हाई कोर्ट ने तत्काल संज्ञान लिया। ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर संज्ञान लिया भी जाना चाहिए। उस महिला को भोजन देने वाले रिम्स कर्मी पर तत्काल कार्रवाई भी हुई। सरकार ने स्वास्थ्य विभाग की एक टीम से इस घटना की तुरंत जांच कराई। यह सब जान-सुनकर अच्छा लगता है लेकिन इस तेजी में एक बात विस्मृत ही रह गई। जिस राजनीतिक व्यक्तिने उस महिला की तस्वीर उतारी और मीडिया तक पहुंचाया, उनका कौन सा स्वार्थ था? क्या यह उन्होंने बिल्कुल नि:स्वार्थ भाव से संवेदनशीलता से मानवता के नाते किया या कुछ और बात है? यदि ऐसा ही था तो उस महिला की वे कुछ व्यवस्था भी तो कराते। कम से कम रिम्स के निदेशक तक या किसी सक्षम पदाधिकारी, मंत्री, विधायक तक बात पहुंचाते।

जैसा कि बाद में सरकार की जांच और रिम्स प्रबंधन की तहकीकात से पता चला, वह महिला अरसे से रिम्स परिसर में रह रही थी। एक मरीज के तौर पर उसका पंजीयन तक नहीं था। दरअसल, वह विक्षिप्त है, जिसे परिवार के लोग रिम्स परिसर में छोड़कर चलते बने थे। ऐसे कुछ और लोग रिम्स को अपना बसेरा बनाए हुए थे। बात ऊपर तक जाने और चर्चित होने पर इन सभी को समुचित स्थान रिनपास तक पहुंचा दिया गया। रिम्स प्रबंधन और उसके कर्मियों, खासकर सुरक्षा से जुड़े लोगों की यह चूक जरूर है कि उनके परिसर में उक्त महिला सहित कतिपय अन्य लोग अनधिकृत तरीके से रह रहे थे, जिस पर उन्होंने गौर ही नहीं किया। जिस कर्मचारी ने इस महिला को भोजन दिया, असल मानवता तो उसने दिखाई। चूंकि विक्षिप्तता के कारण वह थाली में भोजन नहीं लेती थी, इसलिए उसको फर्श पर ही खिला दिया। असल बात यह कि इस मामले को तूल देने वाले की भी पड़ताल की जानी चाहिए क्योंकि कई कारणों से, जिसमें एक गुटबाजी और राजनीति भी शामिल है, रिम्स प्रबंधन कुछ लोगों की आंखों की किरकिरी बना रहता है। दूसरी बात काम-धंधे से भी जुड़ी रहती है। चूंकि इस प्रकरण की जांच हो रही है और अदालत ने संज्ञान लिया है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि सारे तथ्यों की गंभीरता से जांच हो तो भेद खुले।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]