सैकड़ों करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति जुटाने के आरोपों से दो-चार लालू यादव के विभिन्न ठिकानों पर आयकर विभाग की छापेमारी के साथ ही पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे के यहां केंद्रीय जांच ब्यूरो की छानबीन को लेकर विपक्षी नेता चाहे जो कहें, इस तरह की कार्रवाई अपेक्षित थी। सच तो यह है कि चिदंबरम के बेटे कार्ति को लेकर इस तरह के सवाल भी उठ रहे थे कि आखिर जांच एजेंसियां उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करने से क्यों हिचक रही हैं? ऐसे सवाल इसलिए और भी उठ रहे थे, क्योंकि एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय के बार-बार समन जारी करने के बावजूद वह उसके समक्ष पेश होने से इन्कार कर रहे थे। आखिर कार्ति चिदंबरम को ऐसी सुविधा क्यों मिली? यह अजीब है कि जब कार्ति पर तरह-तरह के आरोप लगने के साथ यह रेखांकित किया जा रहा था कि उनके मालामाल होने में उनके पिता का हाथ है तो कांग्रेसी नेताओं समेत खुद चिदंबरम सरकार को यह चुनौती दे रहे थे कि आखिर सरकारी एजेंसियों को कार्रवाई करने से किसने रोका है? अब जब केंद्रीय जांच ब्यूरो ने अपनी कार्रवाई आगे बढ़ा दी तो यह आरोप लगाया जा रहा कि सरकार राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है। यही आरोप लालू यादव के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई के मामले में उछाला जा रहा है। क्या राजनीतिक दल यह चाहते हैं कि नेताओं को मनमानी करने की छूट दे दी जाए? यदि नहीं तो फिर बेहतर होगा कि लालू यादव और चिदंबरम के समर्थक एवं शुभचिंतक यह बताएं कि इन दोनों नेताओं के बेटों के पास अकूत संपत्ति कहां से आई? क्या कार्ति चिदंबरम की विदेशों में तमाम संपत्ति होने के सनसनीखेज आरोप की अनदेखी कर दी जाए? इसी तरह क्या इसे मजाक माना जाए कि लालू यादव परिवार एक हजार करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति हासिल करने के गंभीर आरोपों से घिरा है?
यह सही है कि लालू यादव और चिदंबरम के बेटे के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर हुई, लेकिन इसके आधार पर कोई राजनीतिक निहितार्थ निकालने का कोई तुक नहीं, क्योंकि गत दिवस ही केंद्र सरकार ने ऑपरेशन क्लीन मनी के तहत वह वेबसाइट लांच की जिसमें कर चोरों का उल्लेख होगा। उचित यह होगा कि सरकारी एजेंसियां एक ओर जहां कालेधन के खिलाफ अपने अभियान को और धार दें वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। छल-कपट से पैसा बनाने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए। भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ तो कहीं ज्यादा कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। यह पर्याप्त नहीं कि आखिरकार आयकर विभाग और सीबीआइ लालू यादव एवं चिदंबरम के बेटे के खिलाफ सक्रिय हुई। इन दोनों एजेंसियों को मामले की तह तक जाने के साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सभी दोषी लोगों को उनके किए की सजा मिले। ऐसा इसलिए, क्योंकि नेताओं और अन्य रसूख वालों के खिलाफ ठोस एवं निर्णायक कार्रवाई के मामले में केंद्रीय एजेंसियों का रिकॉर्ड सराहनीय नहीं है। ऐसे लोगों के मामले में या तो बहुत धीमी कार्रवाई होती है या फिर लीपापोती।

[  मुख्य संपादकीय  ]