ब्लर के लिए
नशे की हालत में वाहन चलाने के कारण कई हंसते-खेलते परिवार उजड़ गए, अब इस पर लगाम लगाने के लिए सख्ती जरूरी है

एक युवक को जेल भेजते हुए साकेत कोर्ट की टिप्पणी, शराब पीकर वाहन चलाना सुसाइड बम से कम नहीं है, वाकई चिंताजनक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि जुर्माना लेकर छोड़ देने से न तो गलती करने वाले को कोई सबक मिलता है और न ही अन्य लोगों को। कोर्ट की टिप्पणी इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि रफ्तार और नशे के जुनून में ऐसे वाहन चालक दूसरों के लिए भी अक्सर काल बन जाते हैं। पिछले दिनों ऐसे कई हादसे हुए भी हैं जिनमें नशे की हालत में वाहन चलाने से कई हंसते-खेलते परिवार उजड़ गए। लेकिन समस्या यही है कि दिल्ली के निवासी पिछली घटनाओं से कोई सीख नहीं लेते। इसीलिए ऐसे हादसे बार-बार होते रहते हैं। हैरत की बात यह भी है कि पुलिस भी हाथ पर हाथ धरे मूकदर्शक बनी रहती है। यातायात पुलिस को तो चाहिए कि नशे की हालत में वाहन चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। साथ ही उनका वाहन भी जब्त करे और उनके परिजनों को इस बारे में सूचित करे।
गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए तो महानगरों की जीवनशैली ही कुछ ऐसी हो गई है कि उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव में लोग अच्छे-बुरे का ख्याल भी भूलते जा रहे हैं। आज की नई पीढ़ी तो हर समय हड़बड़ाहट और जल्दबाजी में रहती है। जल्दबाजी अनावश्यक तनाव उत्पन्न करती है। नशा इस तनाव को और घातक बना देता है। इस स्थिति से बचाव के लिए नई पीढ़ी को अपनी जीवनशैली में बदलाव करना होगा। जीवन में सभी कुछ जल्दबाजी में पाना संभव नहीं। धैर्य भी जरूरी है। नशे की हालत में वाहन चलाना खुद के साथ-साथ दूसरों के लिए भी जानलेवा होता है। हड़बड़ाहट और तनाव भी बहुत बार उलटा पड़ जाता है। दिल्ली पुलिस के अलावा दिल्ली सरकार को भी इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। दोनों को चाहिए कि इस तरह के मामलों में सख्त कार्रवाई का रास्ता ढूंढे। जब तक ऐसा नहीं होगा इनकी पुनरावृत्ति होती रहेगी और किसी न किसी परिवार का चिराग बुझता रहेगा। अभिभावकों को भी चाहिए कि अपने बच्चों को जिंदगी के मायने समझाएं।

 [ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]