इसमें दो राय नहीं कि थानेदार अपराध नियंत्रण और कानून व्यवस्था की अहम कड़ी होते हैं लेकिन सवाल यह है कि कितने थानेदार इस बात को संजीदगी से महसूस करके अपना दायित्व निभाते हैं? पुरानी व्यवस्था है कि अतिक्रमण के लिए थानेदार जिम्मेदार होंगे। क्या सचमुच इस व्यवस्था का कोई पुरसाहाल है? राजधानी पटना समेत गया, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, दरभंगा या किसी भी शहर में चले जाइए, सडकें अतिक्रमण से पटी मिलेंगी। अतिक्रमण ही राज्य के शहरों में जाम की प्रमुख वजह है। इस समस्या ने राज्य के शहरी जीवन को कष्टप्रद बना दिया है लेकिन इसके लिए अब तक तो किसी थानेदार पर गाज नहीं गिरी। न ही कोई थानेदार कभी अतिक्रमण हटवाता दिखा। यदा-कदा निकाय प्रशासन अतिक्रमण हटवाने की कोशिश करता है तो पुलिस यानी थाने के असहयोग के कारण विफल रहता है। थानेदार आखिर यह कैसी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? शराबबंदी के प्रकरण में थानेदारों की भूमिका चर्चा में रही यद्यपि पहली बार उनके खिलाफ कार्रवाई भी हुई। ऐसा संभवत: इसलिए क्योंकि शराबबंदी की समीक्षा खुद मुख्यमंत्री कर रहे थे। अन्य किसी प्रकरण में थानेदारों पर सख्ती किए जाने का उदाहरण नहीं है। अब नई व्यवस्था की गई है कि नो इंट्री जोन में कोई वाहन घुसा तो थानेदार जिम्मेदार होंगे। इस तरह का औपचारिक आदेश न हो तो भी यह थानेदार की जिम्मेदारी है कि उनके इलाके के नो इंट्री जोन में कोई वाहन न घुसे। बहरहाल, यह आदेश जारी होने के बावजूद यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि नो इंट्री जोन में वाहन नहीं गुजरेंगे। ऐसे कई और विषय हैं जिनका संबंध थानेदार की सक्रियता एवं संवेदनशीलता से होता है। दरअसल, थानेदारों की कार्यप्रणाली संबंधी विसंगतियों की मुख्य वजह भ्रष्टाचार है। शासन-प्रशासन में उच्च पदों पर स्थापित अधिकारियों को समझना होगा कि पानी हमेशा ऊपर से नीचे बहता है। यदि थानों और थानेदारों को पटरी पर लाना है तो पहले उच्च कार्यालयों की कार्यप्रणाली और सोच सुधारनी होगी। पुलिस तंत्र को कारगर बनाने के लिए आवश्यक है कि निचले स्तर के अधिकारियों को न सिर्फ अपेक्षित सुविधाएं प्रदान की जाएं बल्कि उन्हें पेशेवराना कार्यशैली का प्रशिक्षण भी दिया जाए। थानेदारों को जो जिम्मेदारियां दी जाएं उनकी नियमित रूप से समीक्षा की जानी चाहिए। बेहतर और बदतर परफारमेंस के लिए प्रोत्साहन व दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए। थानेदारों में यह संवेदनशीलता पैदा की जानी चाहिए कि उन्हें जो वर्दी और स्टार मिले हैं, उसका इस्तेमाल अपराध नियंत्रण, कानून व्यवस्था की स्थापना तथा आम आदमी को सुरक्षा एवं न्याय दिलाने में करें।
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पुलिसकर्मी भी इंसान होते हैं लेकिन वर्दी और अधिकार उन्हें विशिष्ट बना देते हैं। पुलिस अधिकारियों को नहीं भूलना चाहिए कि यह विशिष्टता अपराध नियंत्रण और कानून व्यवस्था स्थापित करने के लिए है, न कि दबंगई और भ्रष्टाचार के लिए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]