पिछले पांच साल के दौरान कम से कम सात सौ ऐसे लोगों ने बतौर बुजुर्ग पेंशन का लाभ लिया, जो निर्धारित मापदंडों पर खरे नहीं उतरते थे। समाज कल्याण विभाग द्वारा दी गई इस जानकारी से विभाग की लापरवाही उजागर होती है। यह जानकारी सिर्फ उत्तर-पश्चिमी जिले की है। इन लोगों को पेंशन देने की सिफारिश तत्कालीन सांसद और विधायकों ने की थी। यानी इन लोगों ने भी आवेदन आगे बढ़ाने से पहले यह जांच करने की जरूरत नहीं समझी कि क्या ये लोग इस पेंशन के पात्र हैं भी या नहीं।

उसी तरह विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने भी जांच करने की जहमत नहीं उठाई। गौर करने वाली बात यह है कि आर्थिक रूप से संपन्न कई लोग भी खुद को कुछ रुपये के लालच से दूर नहीं रख सके। कई लोग तो ऐसे रहे जो उम्र से पहले ही बुजुर्ग बन गए। यह मामला सिर्फ एक जिले का है। हो सकता है कि बाकी जिलों में ही ऐसा खेल हुआ हो। अब सवाल यह है कि जरूरतमंद लोगों का हक मारने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई। जब विभाग के अधिकारियों के पास इसकी जानकारी है तो कार्रवाई करने की भी जिम्मेदारी उन्हीं की है, लेकिन अब तक कार्रवाई नहीं होना उनकी मंशा पर भी सवाल खड़े करता है।

नियमानुसार वैसे बुजुर्गो को पेंशन दी जानी चाहिए जो गरीबी रेखा के नीचे आते हों। पेंशन की रकम सरकारी खजाने से जाती है। यानी यह वैसी रकम है जो विकास के अन्य कार्यो पर भी खर्च की जा सकती थी। गलत जानकारी देकर सरकारी खजाने को इस तरह चूना लगाने वाले लोगों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए। एक जिले में मामला सामने आने के बाद भी समाज कल्याण विभाग ने अब तक बाकी जिलों में इसकी जांच क्यों नहीं की, यह भी पता करना चाहिए।

इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही उन जनप्रतिनिधियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने आंख मूंद कर सिफारिश की। इन सभी लोगों से अब तक दी गई रकम की वसूली भी होनी चाहिए ताकि जनता का पैसा उसकी बेहतरी के लिए खर्च हो सके। मौजूदा जनप्रतिनिधियों को भी चाहिए कि वे सिफारिश करते वक्त इस बात की जांच अवश्य करें कि आवेदनकर्ता पेंशन योजना का लाभ उठाने का हकदार है या नहीं।