टाटा ग्लोबल बेवरेजेज लिमिटेड (टीबीजीएल) की पिछली वार्षिक आम बैठक में टाटा ने कहा था कि बंगाल के साथ उनकी दुश्मनी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। टाटा समूह तभी निवेश करता है जब उपयुक्त माहौल होता है। बुधवार को एक बार फिर टाटा समूह के चेयरमैन साइरस मिस्त्री ने कहा कि बंगाल में अवसर मिलने पर उनका समूह निवेश के बारे में विचार कर सकता है। यानी टाटा को बंगाल में निवेश से गुरेज नहीं है। सिंगुर प्रकरण भले सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। बंगाल की वर्तमान सरकार के साथ कानूनी जंग जारी है। बावजूद इसके टाटा समूह प्रमुख का यह कहना कि अवसर दिखने पर निवेश कर सकते हैं। यह सराहनीय है। बंगाल में टाटा समूह की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर मिस्त्री ने कहा बंगाल को खुद अवसर को प्रदर्शित करना होगा। जब अवसर दिखाई देंगे तो हम निवेश करेंगे, बेशक सत्ता किसी की भी हो। मिस्त्री ने कहा कि हम व्यवसाय को राजनीति से अलग रखते हैं। बंगाल का हमारे दिल और इतिहास में एक खास जगह है, लिहाजा हम इस राज्य को विकास के नजरिए से देखते हैं। सिंगुर से नैनो परियोजना को हटाने के बाद से टाटा समूह तथा तृणमूल के बीच कड़वाहट है। तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के विरोध के कारण ही नैनो परियोजना गुजरात ले जाने का फैसला लिया था। उस समय ममता विरोधी दल की नेत्री थीं और आज वह मुख्यमंत्री हैं। ममता लगातार बंगाल में निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं। अपने पहले कार्यकाल से ही उद्योगपतियों का सम्मेलन हर वर्ष आयोजित करती आ रही हैं। निवेश की तलाश में सिंगापुर, भुटान, लंदन का दौरा भी कर चुकी हैं। अब आगामी माह यूरोप के दौरे पर जा रही हैं। वहीं देश के विख्यात उद्योगपतियों से भी लगातार संपर्क स्थापित करती आ रही हैं। ऐसे में टाटा समूह के प्रमुख का यह कहना कि उपयुक्त अवसर दिखने पर वह निवेश कर सकते हैं यह ममता के लिए अच्छा संकेत हैं। पर, इसके साथ सबसे बड़ा सवाल यह है कि ममता सरकार राज्य में उद्योग व निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कैसे अवसर पैदा करते हैं? दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत बंगाल में राज्य सरकार की उद्योग के लिए जमीन नीति है। क्योंकि, ममता बनर्जी अपने पहले कार्यकाल से ही साफ कर चुकी हैं कि उनकी सरकार राज्य में जबरन जमीन अधिग्र्रहण नहीं करेगी। चाहे वह उद्योग के लिए हो या फिर केंद्र व राज्य सरकार की परियोजनाओं के लिए। हालांकि, ममता सरकार का तर्क रहा है कि राज्य में उद्योग के लिए जमीन की कमी नहीं है। ऐसे में कही टाटा समूह के प्रमुख ने तो परोक्ष रूप से उसी बात के संकेत तो नहीं दिए हैं जिसके चलते टाटा को सिंगुर को बाई-बाई करना पड़ा था।

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]