हाल के घटनाक्रम से प्रतीत होता है कि राज्य भाजपा नेताओं ने 2015 विधानसभा चुनाव की करारी हार से कोई सबक नहीं लिया। पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं के बीच इस कदर मनमुटाव बरकरार है कि वे सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने और अपशब्दों के इस्तेमाल में भी संकोच नहीं कर रहे। पटना के भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिंहा विधानसभा चुनाव के पहले से ही पार्टी के नेताओं और नीतियों की सार्वजनिक रूप से आलोचना करते आ रहे हैं। भाजपा नेता मौन रहकर उनकी बयानबाजी को महत्वहीन साबित करने की रणनीति पर अमल कर रहे थे लेकिन इस बार राज्य नेतृत्व ने आपा खो दिया, जब शत्रुघ्न सिंहा गत दिवस राजद प्रमुख लालू प्रसाद के बचाव में कूद पड़े। इसके बाद दोनों पक्ष कभी ट्विटर, तो कभी सार्वजनिक बयानबाजी के जरिए एक-दूसरे की बखिया उधेडऩे लगे। सिंहा को पार्टी से निकालने की मांग हो रही है। यह सब ऐसे वक्त हो रहा है, जब यूपी विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व विजय से प्रेरित होकर राज्य भाजपा मिशन 2019 के लिए नए सिरे से कमर कस रही है। वास्तव में अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति की दृष्टि से बिहार में भाजपा के पास फिलहाल सीमित विकल्प हैं। जब पार्टी के शीर्षस्थ नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कामकाज की सराहना कर रहे हैं तो राज्य नेतृत्व के पास लक्षित करने के लिए ले-देकर लालू प्रसाद ही बचते हैं। संयोगवश पिछले दिनों ऐसे मुद्दे भी सामने आए जिनके जरिए भाजपा को लालू प्रसाद की घेरने का मौका मिला। जाहिर तौर पर पार्टी के वरिष्ठतम नेता सुशील मोदी इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसे में शत्रुघ्न सिंहा की 'लालू-समर्थक' टिप्पणी पर उनका बिदकना स्वाभाविक है। वैसे प्रदेश भाजपा में अन्य स्तरों पर भी 'अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग' सुनाई देता है। पार्टी को यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले चुनाव में उसे भले ही सरकार चलाने का जनादेश नहीं मिला लेकिन विपक्ष की भूमिका उसके पास है। पार्टी को संगठित व सशक्त विपक्ष के तौर पर जनता के बीच रहना चाहिए। सरकार के जनविरोधी कार्यों का लोकतांत्रिक ढंग से विरोध विपक्ष का दायित्व है। यदि यह जिम्मेदारी निभाने के बजाय भाजपा के अंदर इस तरह सिर-फुटौवल जारी रही तो पार्टी को भविष्य में भी मतदाताओं से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए।
....................................
प्रदेश भाजपा के बड़े नेता जिस तरह आपस में सिर-फुटौवल कर रहे हैं, वह घोर निराशाजनक है। शत्रुघ्न सिंह का प्रकरण पिछले दो-तीन साल से इसी तरह चल रहा। केंद्रीय नेतृत्व न तो उन्हें अनुशासित कर पा रहा, न ही उन पर कोई कार्रवाई की जा रही। इससे राज्य के नेता हतोत्साहित हो रहे। केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]