शिक्षा संस्थानों को नशामुक्त करने की सरकार की पहल सुखद अहसास देने वाली है, लेकिन धरातल पर यह प्रयास कितना सफल होगा, देखना बाकी है।
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राज्य की नई सरकार ने उच्च शिक्षा संस्थानों को नशामुक्त करने के लिए सराहनीय पहल की है। अगर सरकार और उच्च शिक्षा विभाग का यह प्रयास सिरे चढ़ा तो राज्य के युवाओं के लिए सुखद भविष्य की नींव साबित होगा। पंजाब के बाद अब उत्तराखंड में युवाओं की बीच मादक पदार्थों व तंबाकू उत्पादों की लत तेजी से बढ़ रही है। इसे लेकर तमाम राजनीतिक और सामाजिक मंचों से चिंता जताई जाती रही है। राज्य में नशामुक्ति को लेकर पुलिस और कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं ने युवाओं को जागरूक करने को लेकर मुहिम भी चलाई, लेकिन बहुत अच्छे परिणाम अभी तक देखने को नहीं मिले। अब एक ओर जहां राज्य में शराबबंदी को लेकर तमाम संगठनों की आवाज बुलंद हो रही है, तो वहीं उच्च शिक्षा मंत्री की पहल पर उच्च शिक्षा निदेशालय ने तमाम महाविद्यालयों को निर्देश जारी किए हैं कि संस्थान के मुख्यद्वार से 200 मीटर के दायरे में कोई भी मादक पदार्थ या तंबाकू उत्पाद की बिक्री नहीं हो। इसका पालन सुनिश्चित करने का जिम्मा भी महाविद्यालयों को दिया गया है। अगर यह निर्देश धरातल पर उतर पाए तो काफी हद तक उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसर नशा मुक्त होने की ओर कदम बढ़ा पाएंगे। राज्य की राजधानी समेत तमाम शिक्षण संस्थानों के मुख्यद्वारों के ठीक सामने तमाम तंबाकू उत्पादों की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। इन्हें रोकने के लिए अभी तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की गई। इतना ही नहीं, निर्धारित दूरी के मानकों को ताक पर रख शराब की दुकानें तक खोल दी गई हैं। इनके साथ ही इन तंबाकू उत्पादों और अन्य दुकानों के माध्यम से ड्रग माफिया भी अपने धंधे को संचालित कर रहे हैं। इनमें छोटे ढाबों की भूमिका पर भी सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में उच्च शिक्षा विभाग की नियमों के पालन को लेकर शुरू की गई मुहिम रंग लाई तो राज्य के युवाओं को काफी हद तक नशे से दूर रखा जा सकेगा। इसके साथ ही शिक्षण संस्थानों में भी माहौल बेहतर होगा। इसके लिए सरकार के स्तर से अभियान चलाए जाने की बात भी कही गई है। हालांकि, तमाम सरकारी घोषणाओं और आदेशों की तरह ही इस पहल का भी हस्र होगा या यह गंभीरता से लागू की जाएगी, यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा। हालांकि, इस फैसले से एक सुखद और नशामुक्त माहौल की उम्मीद शिक्षा के मंदिरों में जगी है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]