प्रदेश में गर्मियों की छुट्टियां खत्म होते ही प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक तमाम सरकारी विद्यालयों का मुआयना होगा। शिक्षा मंत्रलय के निर्देश पर महकमे के अधिकारी नए जोश के साथ इस मुहिम में जुटेंगे। मंत्रलय ने चालू शैक्षिक सत्र को शिक्षा गुणवत्ता वर्ष घोषित करते हुए यह कदम उठाया है, उससे बदलाव को लेकर उम्मीदें जगी हैं। सरकारी विद्यालयों पर आम जनता का भरोसा कम हो रहा है, इसकी तस्दीक खुद शिक्षा विभाग के आंकड़े कर रहे हैं।

राज्य गठन के बाद अब तक प्राथमिक स्तर पर छात्रसंख्या में 50 फीसद की कमी आ चुकी है। उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर भी साल-दर-साल यह समस्या गंभीर होती जा रही है। शिक्षा को लेकर सरकार की नीतियों, महकमे की कार्यप्रणाली, हर स्तर पर आत्म अवलोकन की आवश्यकता है। विद्यार्थी को केंद्र में रखकर जिस शिक्षा का ताना-बाना बुना जाना चाहिए, सरकारी तंत्र में वह इच्छाशक्ति दिखाई नहीं देती। आम अभिभावक माली हालत ठीक न होने के बावजूद अपने पाल्यों को सरकारी विद्यालयों में भेजने के बजाए निजी विद्यालयों में भेजने को विवश हैं। सरकारी शिक्षा को दुरुस्त करने के नाम पर अधिकारियों की लंबी-चौड़ी फौज खड़ी की जा चुकी है।

इस फौज का सबसे अधिक वास्ता शिक्षा महकमों के दफ्तरों, शासन से लेकर महकमे के स्तर पर निरंतर होने वाली बैठकों तक सीमित हो गया है। नतीजतन विद्यालयों का मुआयना रस्म अदायगी साबित हो रहा है। इसका सबसे अधिक खामियाजा ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों के विद्यालयों को भुगतना पड़ रहा है। दुर्गम और दूरदराज के विद्यालयों में तैनाती के बावजूद शिक्षक जाने से कन्नी काट रहे हैं या नियमित रूप से उपस्थित नहीं हो रहे हैं। यही नहीं, विभागीय मशीनरी शिक्षकों की दूरदराज में तैनाती सुनिश्चित करने में कामयाब नहीं हो पाई है।

ऐसे में यदि महकमे के अधिकारी मुहिम के रूप में विद्यालयों का मुआयना करते हैं तो इससे शैक्षिक वातावरण बनाने में मदद मिलेगी। अधिकारियों के मुआयने से विद्यालयों में छात्रसंख्या और शिक्षकों की उपस्थिति पर नजर रहेगी ही, साथ में शिक्षकों की समस्याओं का त्वरित निराकरण भी हो सकेगा। शैक्षिक गुणवत्ता का वातावरण बनाने के लिए मंत्रलय को शिक्षकों की समस्याओं के निराकरण और विभागीय कामकाज में पारदर्शिता को भी प्राथमिकता देनी होगी।

[उत्तराखंड संपादकीय]