पंजाब में बच्चों का अपहरण करने वाले गिरोह का सक्रिय होना चिंता का विषय है। यहां एक के बाद एक जिस तरह से और जिस तेजी से ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं, वह भय पैदा करने के लिए काफी हैं। आजकल पटियाला में ऐसा ही खौफ देखने को मिल रहा है, जहां चार दिन में छह बच्चों का अपहरण हो गया है। हालांकि पुलिस ने मामले का सुराग लगा लिया है और ऐसी जानकारी मिली है कि ये सभी बच्चे पश्चिम बंगाल में मिल गए हैं। पुलिस की टीम बच्चों को लेने के लिए पश्चिम बंगाल रवाना भी हो गई है, लेकिन अभी इस मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी होना बाकी है। इससे पूर्व भी प्रदेश में बच्चों के अपहरण की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पिछले दिनों कपूरथला के जसकीरत के अपहरण और उसकी हत्या, फरीदकोट और बठिंडा में बच्चों के अपहरण की घटनाओं से भी प्रदेश में सनसनी फैल चुकी है। जुलाई माह में तो पुलिस ने ही यह खुलासा कर चौंका दिया था कि जालंधर व आसपास के जिलों से करीब 13 बच्चों का अपहरण कर उन्हें विदेश में बेच दिया गया है। जालंधर पुलिस ने अपहृत बच्चों की पहचान कर उनकी सूची भी जारी की थी, लेकिन यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इनमें से किसी भी बच्चे की बरामदगी नहीं हो सकी। इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि प्रदेश में बड़े पैमाने पर बच्चा चोर गिरोह सक्रिय है, लेकिन जो बात सर्वाधिक चिंताजनक है, वह यह है कि न तो गिरोह का पूरी तरह पर्दाफाश हो पाया है और न ही सभी बच्चों की बरामदगी हो पाई है। यह पुलिस के लिए गंभीर चुनौती का विषय है कि वह कैसे इन घटनाओं को रोकती है और मासूमों का अपहरण करने वालों को सलाखों के पीछे पहुंचाती है। इसके लिए पुलिस को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। सरकार को भी ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा। मासूमों की चोरी उनके बचपन और भविष्य दोनों के साथ खिलवाड़ है और इसे किसी कीमत पर सहन नहीं किया जा सकता। इसलिए यह जरूरी है कि सरकार और पुलिस प्रशासन इसे रोकने के लिए जो भी आवश्यक कदम हो वह तत्काल उठाए। यदि कड़े कानून की आवश्यकता है तो उसे बनाया जाना चाहिए ताकि किसी के जिगर का टुकड़ा उससे अलग न हो सके। अभिभावकों को भी चाहिए कि वे हमेशा चौकन्ने रहें और बच्चों को कभी भी अकेला न छोड़ें, क्योंकि जिस प्रकार का वातावरण है उसमें ऐसी संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि जरा सी चूक जीवन भर के लिए पश्चाताप का कारण बन सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]