-----------चीनी मिलों की बिक्री की जांच का आदेश देकर योगी ने खुद अपनी सरकार के साथियों के लिए भी लक्ष्मण रेखा खींच दी है।-----------बसपा सरकार में २१ चीनों मिलों की बिक्री में हुए घोटाले की जांच का आदेश देकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह साफ कर दिया है कि वह अनियमितताओं के मामले में किसी का मुलाहिजा नहीं करने जा रहे हैं। किसी योजना पर कोई आरोप लगे हैं तो उसे जांच की अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा। योगी सरकार ने एक ऐसा मसला उठाया है जो सीधे स्तर पर सरकारी लोगों की मिलीभगत से सरकारी लूट की श्रेणी में आता था और साफ दिखाई भी देता था कि निजाम की शह पर किस तरह कुछ लोगों के लिए गोटियां बिछाई गईं। बसपा और अखिलेश की सरकार में भी यह पूरा प्रकरण कागजी परतों में ही दबा रहा और आबकारी विभाग में सिंडीकेट की समानांतर सत्ता और बलशाली होती गई। आश्चर्य है कि इस बिक्री के घोटालों पर सीएजी ने विस्तृत रिपोर्ट दी, इसे विधानसभा में भी रखा गया लेकिन, फिर भी, सरकार ने साख की बहाली के लिए कोई कदम नहीं उठाया। सरकार जब किसी घोटाले से उदासीन नजर आती है, तो उसके कारणों को बूझ पाना बहुत मुश्किल नहीं है। योगी का फैसला न सिर्फ सिंडीकेट पर चोट है, बल्कि यह चेतावनी भी है कि भाजपा सरकार के मंत्री और अफसर भी ऐसे सिस्टम से दूर रहें तो ही बेहतर। संदेश स्पष्ट है कि शुचिता-पारदर्शिता के मानदंड सबके लिए बराबर हैं और नेतृत्व की सतर्क निगाह अपनों पर भी होगी। निस्संदेह ऐसे निर्णय जनता पसंद करती है।योगी सरकार के इस फैसले से पूर्व की सरकारों में शामिल कई नेताओं-अफसरों में बेचैनी देखने को मिल सकती है क्योंकि चीनी मिलों की बिक्री ही एक अकेला मामला नहीं है जो जांच के दायरे में आया है। गोमती रिवर फ्रंट के लिए भी योगी ने फ्रंट खोल दिया है। संभावना है कि सपा और बसपा सरकार के कई ऐसे फैसले जांच की परिधि में आएं, जिन पर सीएजी ने सीधे तत्कालीन सत्ता पर अंगुलियां उठाई हों। सिस्टम के गलत इस्तेमाल की इजाजत किसी सत्ता को नहीं होती लेकिन, पिछली सरकारों में सिस्टम की मनमानी व्याख्या की मानो परंपरा सी बन गई थी। मुख्यमंत्री योगी इस परंपरा से हटकर जनता को पारदर्शी प्रशासन का प्रयास करते दिख रहे हैं।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]