औद्योगिक पैकेज के मामले में पड़ोसी राज्यों के मुकाबले पंजाब हमेशा अनदेखी का शिकार होता रहा है। गत दिवस भी कुछ ऐसा ही हुआ जब नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिय़ा ने मुख्यमंत्री कैप्टन अरमिंदर सिंह की प्रदेश को विशेष औद्योगिक पैकेज देने की मांग को ठुकरा दिया। इससे पहले भी प्रदेश की ऐसी मांग पर केंद्र का यही रवैया रहा है। इसके विपरीत हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड जैसे राज्यों को जमकर रियायतें दी जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वहां उद्योग-धंधे शुरू करना आसान हो जाता है। विभिन्न प्रकार की रियायतें उद्योगों को लुभाने का कार्य करती हैं और अंतत: इससे उद्यमियों को लाभ प्राप्त होता है। इसके विपरीत पंजाब को ऐसी रियायतों से वंचित रखा जाता है, जिससे यहां उद्योग-धंधे पड़ोसी राज्यों की तरह फलफूल नहीं रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि अब तक प्रदेश से बड़ी संख्या में उद्योग रियायत प्राप्त करने वाले प्रदेशों में पलायन कर चुके हैं। यह निस्संदेह प्रदेश के विकास के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। पिछली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार ने उद्योगों को आकर्षित करने के लिए कई बड़े आयोजन किए थे और अब कांग्रेस सरकार की ओर से भी प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि प्रदेश में औद्योगिक विकास को गति प्रदान की जा सके, परंतु पड़ोसी राज्यों को मिल रही औद्योगिक रियायतों के कारण अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। केंद्र सरकार को चाहिए कि इस मामले में पंजाब के हित की अनदेखी न करे। इससे पहले ही प्रदेश का बहुत नुकसान हो चुका है। पंजाब को भी विकास के लिए बराबर अवसर मिलने ही चाहिएं। बात सिर्फ उद्योगों की ही नहीं है, अपितु यहां कृषि व किसानों के कर्ज की समस्या भी लगातार विकराल रूप धारण करती जा रही है। आए दिन किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान से लगती सीमावर्ती क्षेत्रों की समस्याओं पर भी शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह पूरे तथ्यों के साथ मजबूती से केंद्र के समक्ष अपनी बातों को रखे। इस मामले में किसी भी प्रकार की राजनीति से भी परहेज किया जाना चाहिए। चाहे केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकार, सभी का लक्ष्य प्रदेश तथा प्रदेश के लोगों का समान विकास ही होना चाहिए और इसके लिए जो भी संभव हो वह किया जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]