प्रदेश में मानसून से पूर्व इंद्रदेव की मेहरबानी ने किसानों को खुश होने का मौका दिया है तो प्रदेश सरकार ने भी राहत की सांस ली है। प्रदेश में धान का सीजन 15 जून से शुरू होता है। उसके बाद बिजली की कृषि खपत बढ़ जाती है और घरेलू क्ष्ोत्र में भी लोड अधिक होने से अघोषित कटौती विवशता हो जाती है। यह सीजन पिछले कुछ वर्षों में सरकारों के लिए चुनौती बन जाता था। इस बार इंद्रदेव ने प्रदेश सरकार पर
मनोहर कृपा कर राहत दे दी। प्रदेश में जून माह की औसत से डेढ़ गुणा बारिश हो चुकी है और अभी एक सप्ताह से अधिक का समय शेष है। किसानों की नलकूप चलाने पर खर्च होने वाली लाखों रुपये की बचत तो हुई ही बिजली का बिल भी नियंत्रित रहेगा। मौसम की मेहरबानी ऐसी ही रही तो किसान निश्चित तौर पर प्रदेश में धान के भंडार भर देंगे।
मौसम के इस बदले रुख ने किसानों को तो व्यस्त कर दिया है, किसानों के मसले पर सियासत करने वालों की मुहिम को झटका दे दिया है। राजस्थान, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में किसान आंदोलन के बाद प्रदेश में भी आंदोलनं के स्वर मुखर हो रहे थे। ऐसे में इंद्रदेव की मेहरबानी ने इन स्वरों को भी नरम किया है। निश्चित तौर पर हरियाणा में पानी बड़ा मसला है। भले ही नहरों का बड़ा नेटवर्क हो, लेकिन प्रदेश में खेती आज भी मुख्य रूप से मौसम की कृपा पर ही निर्भर है। यह भी उल्लेखनीय है कि जल संसाधन सिमट चुके हैं, ऐसे में भूजल के दोहन का ही विकल्प किसानों के सामने बचता है। इसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि प्रदेश के 13 जिले डार्क जोन में तबदील हो चुके हैं। इस भीषण स्थिति के बावजूद आज तक भी हम इस मसले पर गंभीर नहीं हैं। ऐसे में आवश्यक है कि इंद्रदेव की इस रहमत को भविष्य के लिए भी सहेज कर रख लिया जाए। शहरों व गांवों बरसने वाला लाखों क्यूसेक पानी नालियों में बहकर प्रदूषित हो जा रहा है। भूजल रिचार्ज बिंदुओं के निर्माण व बड़े-बड़े टैंकों में जल संरक्षित कर भविष्य की जरूरतों को समय पर पूरा कर ही सकते हैं और हमारी मौसम पर निर्भरता कम हो सकती है। फिर मौसम हमें बार-बार डराएगा नहीं और किसानों को सिंचाई के लिए बिजली के साथ-साथ डीजल और पेट्रोल पर खर्च होने वाली रकम भी कम ही खर्च करनी पड़ेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]