111दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए 7 फरवरी को होने वाले मतदान में वोट फीसद कम रहने को लेकर जताई जा रही आशंका को निमरूल नहीं कहा जा सकता। यह चिंताजनक है और इसे दूर करने के लिए मतदान फीसद बढ़ाने की दिशा में मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय को अभी काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। मतदान फीसद कम रहने की आशंका के पीछे कुछ गंभीर कारण हैं।

एक साल से कुछ अधिक समय में दिल्ली के मतदाताओं के समक्ष विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद यह तीसरा चुनाव है जिससे उनमें इसके प्रति उदासीनता होने की आशंका जताई जा रही है। चुनाव आयोग ने करीब 80 हजार मतदाताओं को उस सूची में डाल दिया है, जिसमें निवास पर अनुपस्थित पाए गए या स्थानांतरित हो चुके या दोहरे मतदाता परिचय पत्र होने की आशंका वाले मतदाताओं को डाला जाता है। ऐसे मतदाताओं को काफी जांच-पड़ताल के बाद ही मतदान करने दिया जाता है।

यही नहीं, शनिवार को मतदान होने के कारण शुक्रवार से ही दिल्ली के लोगों के बड़ी संख्या में अवकाश लेकर शहर से बाहर घूमने जाने की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। ऐसे में इस चुनाव में पिछले विधानसभा चुनाव से बेहतर मतदान फीसद हासिल करना बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।1दिल्ली में विगत विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड 65.63 फीसद मतदान हुआ था। उस समय मतदान फीसद बढ़ाने के लिए मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने कड़ी मेहनत की थी। वोटरों को जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए थे और अभियान चलाए गए थे, लेकिन इस बार वैसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा।

यह सही है कि इस बार मतदाताओं को जागरूक करने की दिशा में कार्य करने के लिए चुनाव से जुड़े अधिकारियों को बहुत समय नहीं मिल पाया है, लेकिन फिर भी अभी काफी समय शेष है और मतदाता जागरूकता के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के साथ ही चुनाव से जुड़े अधिकारियों का यह भी दायित्व है कि वे अधिकाधिक मतदान सुनिश्चित करने की दिशा में काम करें। लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए भी यह अत्यंत आवश्यक है। ऐसी आशा की जानी चाहिए कि दिल्ली के लोग मतदान को अहम जिम्मेदारी समझते हुए मताधिकार का अधिकाधिक इस्तेमाल करेंगे और पिछला रिकॉर्ड भी तोड़ देंगे।

स्थानीय संपादकीयः दिल्ली