प्रदेश में वन क्षेत्र बढ़ने के संकेत सुखद हैं, लेकिन पर्यावरण सहेजने के लिए हमें और अधिक प्रयास करने होंगे

पर्यावरण बचाने की चुनौती के बीच हिमाचल के लिए सुखद संकेत हैं कि प्रदेश में 393 वर्गमीटर के वन क्षेत्र की बढ़ोतरी हुई है। प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण की मुहिम का ही असर है कि इस बार जिला कांगड़ा ने सबसे अधिक हरियाली को सहेजा और वन क्षेत्र में 130 वर्गमीटर की बढ़ोतरी हुई है। यह आंकड़े फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया-2017 की रिपोर्ट में सामने आए हैं। 2015 में आई रिपोर्ट में केवल पांच जिलों में ही वन क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन पिछले साल के सर्वे के आधार पर हाल ही में सामने आई रिपोर्ट में प्रदेश के सभी जिलों में वन क्षेत्र बढ़ा है, लेकिन इनमें कांगड़ा जिला अव्वल रहा है। पिछले 10 साल के दौरान वन विभाग की ओर से प्रदेशभर में पौधरोपण और अन्य गतिविधियों के सार्थक परिणाम सामने आए हैं, जिससे इस बार बड़ी मात्र में वन क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है। प्रदेश में पौधरोपण तो हर साल होता है लेकिन कितने पौधे बाद में पेड़ बनते हैं यह कोई नहीं जानता है, लेकिन इस रिपोर्ट से सामने आया है कि पौधरोपण अभियान सफल रहा है।

बेशक प्रदेश में वन क्षेत्र बढ़ा है, लेकिन ग्लोबल वार्मिग का असर हिमाचल के वातावरण पर भी नजर आने लगा है। यही वजह है कि इसका असर ऋतुओं के साथ कृषि व बागवानी पर भी दिख रहा है। इसकी आंच हिमाचल की नकदी फसल सेब पर पड़नी शुरू हो गई है। बेशक यहां सेब के बगीचे हर साल बढ़ रहे हैं, लेकिन पैदावार कम होती जा रही है। हर साल छह चिलिंग आवर कम होने से सेब के उत्पादन पर खासा असर पड़ रहा है। बारिश न होने से अन्य फसलें भी प्रभावित हो रही हैं। पर्यावरण असंतुलन के कारण मौसम में आ रहे परिवर्तन से किसानों की पीड़ा जायज है, लेकिन इसे सब कुछ प्रकृति के भरोसे छोड़कर नहीं बैठना चाहिए। हर व्यक्ति पर्यावरण के लिए अपना योगदान दे सकता है। वनों को सहेजने के लिए सिर्फ विभाग या सरकार पर निर्भर न रहकर लोगों को खुद भी प्रयास करने होंगे। वनों को सहेजने के लिए एक पहल यह भी शुरू की जा सकती है कि हम अपने या अपने किसी प्रिय के जन्मदिन पर एक पौधा जरूर रोपें। इससे पर्यावरण तो सहेजा जा सकेगा साथ ही उस पौधे के प्रति हमारा प्यार भी बना रहेगा।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]