जीत के साथ बढ़ी जिम्मेदारी
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रबल जीत के साथ मणिपुर में एक बड़े दल के रूप में भाजपा का उभार मोदी की लोकप्रियता पर मुहर लगाती है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की लंबी प्रक्रिया समाप्त होते-होते ऐसे संकेत उभर आए थे कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान है तो गोवा में कुछ मुश्किल हो सकती है और मणिपुर में वह पहली बार सत्ता के करीब पहुंच सकती है। पंजाब के बारे में करीब-करीब यह स्पष्ट था कि अकाली दल-भाजपा के पक्ष में कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा। इस सबके बावजूद यह भी सही है कि यह अनुमान कोई नहीं लगा पाया-एक्जिट पोल के पंडित भी नहीं कि उत्तर प्रदेश में भाजपा तीन सौ के पार जा सकती है और उत्तराखंड में पचपन के पार। यदि पांच में से दो राज्यों में जीत के बाद भी केसरिया रंग और चटख दिख रहा तो इसका कारण यही है कि राजनीतिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण राज्य में भाजपा ने विपक्षी दलों को चारों खाने चित्त कर दिया। यह प्रचंड जीत है और इसका श्रेय जाता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को और इस लोकप्रियता पर आधारित अमित शाह की रणनीति को। इस जीत का केवल यही मतलब नहीं कि भाजपा के आगे उसके विरोधी दल फीके पड़ गए। इस जीत का एक बड़ा मतलब यह भी है कि मोदी के लिए अगला लोकसभा चुनाव भी आसान हो गया और राज्यसभा में विपक्ष की बाधा पार करना भी। अच्छा होगा कि कम से कम अब विपक्षी दल राज्यसभा में अपने बहुमत का इस्तेमाल करके यह प्रदर्शित करना छोड़ें कि देश की जनता ने 2014 में गलती कर दी थी और उसे ठीक करने का काम उसके पास है। विपक्ष जब जरूरी हो तो सरकार का विरोध करे, लेकिन अपनी नकारात्मकता छोड़े। नि:संदेह उसे हार स्वीकार करना भी आना चाहिए। कांग्रेस के एक स्वयंभू प्रवक्ता और साथ ही मायावती ने अपनी हार का दोष जिस तरह वोटिंग मशीनों पर मढ़ा वह केवल हास्यास्पद ही नहीं, बल्कि इसका भी परिचायक है कि लोकतंत्र में नेता किस तरह लोगों को गुमराह करने का काम पूरी गंभीरता से करते हैं।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में प्रबल जीत के साथ मणिपुर में एक बड़े दल के रूप में भाजपा का उभार मोदी की लोकप्रियता पर मुहर लगाने के साथ ही यह भी बताता है कि बतौर प्रधानमंत्री उनके सामने जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने की चुनौती और बढ़ गई है। मोदी के प्रति जनता के भरोसे की बड़ी वजह विकास की चाह पूरी होने की उम्मीद है। स्पष्ट है कि मोदी सरकार को विकास के मोर्चे पर और अधिक गंभीरता से जुटना होगा। जीत ने उसकी जिम्मेदारी बढ़ा दी है। इस जिम्मेदारी के निर्वहन के क्रम में सबका साथ-सबका विकास नारा आदर्श रूप में सार्थक होना चाहिए। दरअसल यही वह उपाय है जिससे देश को जाति, मजहब की राजनीति से मुक्त किया जा सकता है। वोट बैंक की राजनीति के दौर से मुक्ति ही देश को सही दिशा में ले जा सकती है। इस राजनीति से मुक्ति का मार्ग विकास के सहारे ही मिलेगा। यह आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है कि मोदी सरकार विकास के अपने एजेंडे को और धार देने के साथ ही कुछ बुनियादी सुधारों पर भी अपना ध्यान केंद्रित करे। ऐसा करते समय उसे यह ध्यान रहे तो और बेहतर कि चुनाव और राजनीति संबंधी सुधार भी जरूरी हैं।
[ मुख्य संपादकीय ]