लापरवाही व नशे की लत किस तरह भयानक सड़क हादसों का कारण बनती है, इसका दहला देने वाला उदाहरण जालंधर में देखने को मिला। मंगलवार को उस समय ऐसा अमंगल हुआ और कोहराम मच गया जब श्री राम नवमी शोभा यात्रा के दौरान एक ट्राले ने कई लोगों को कुचल दिया। हादसे का कारण यही है कि चालक ने शराब पीने के लिए स्टेयरिंग ट्राले के उस क्लीनर को पकड़ा दिया जिसे ड्राइविंग आती ही नहीं थी। यह घोर विडंबना है कि एक ओर सड़कों पर नशे के कारण होने वाले हादसों को कम करने के लिए राजमार्गों के किनारे शराब की दुकानों पर अंकुश लगाया जा रहा है दूसरी तरफ भीड़-भाड़ वाले बाजार में ट्राले के चालक की घोर लापरवाही व दुस्साहस कि वह अपनी लत के लिए कई लोगों को जिंदगी दांव पर लगा बैठा। यह हादसा कई कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है। एक बात तो साफ है कि जब तक जनमानस में यह बात मजबूती से नहीं बैठाई जाती कि नशा न केवल अपने बल्कि समग्र समाज के लिए घातक है, तक तब बहुत ज्यादा परिवर्तन आने वाला नहीं है। शराब पीने पर रोक नहीं है लेकिन शराब पीकर वाहन चलाने पर सख्ती बेहद जरूरी है। सच तो यह है कि केवल सख्ती से भी काम नहीं चलेगा बल्कि लोगों को जागरूक करने के लिए भी कारगर योजना बनाने की जरूरत है। शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर पैनी नजर होनी चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि ट्रैफिक पुलिस कभी-कभार इस मामले में सख्ती बरतती है और एल्कोमीटर आदि के इस्तेमाल से जांच की जाती है, रोका-टोका जाता है लेकिन उसका कोई खासा प्रभाव नजर नहीं आता है। यही नहीं, हाइवे के किनारे शराब की दुकानें न खोलने देने का फैसला बेहद सराहनीय है लेकिन यह भी सभी को मालूम है कि जिसने शराब पीनी ही हो, उसके लिए दुकानें दुर्लभ भी नहीं हैैं। ऐसा तो नहीं है कि शराब की दुकानें कहीं निर्जन में चली जाएंगी। जिसे हाइवे पर सफर करते हुए शराब की दुकान तक पुहंचना हो, पहुंच ही जाएगा। यह जरूर है कि शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामलो में कुछ कमी आ सकती है लेकिन इससे पूरी तरह मुक्ति का रास्ता जनजागरण ही है। अभी तक का अनुभव यही बताता है कि सरकारी विभागों या उपक्रमों, गैर सरकारी संस्थाओं आदि द्वारा चलाए जाने वाले जागरूकता कार्यक्रम खास प्रभावी साबित नहीं हो सके हैैं। यही वजह है कि कुछ चालक सरेराह चालक शराब पीने की हिम्मत जुटा रहे हैैं और जालंधर जैसे हादसे हो रहे हैैं। सरकार व समाज को शराब या नशे पर अंकुश के लिए चौतरफा (360 डिग्री) काम करने की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]