रूपनगर में सड़क हादसे में एक व्यक्ति की मौत से गुस्साए लोगों का दो दिन तक शव लेकर सड़क पर प्रदर्शन करते रहना काफी विचलित करने वाला है। इस हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदेश की सड़कों पर सफर कितना सुरक्षित है यह तो आये दिन हो रही दुर्घटनाओं से जगजाहिर ही है। ऐसा नहीं है कि पंजाब में सड़कों की हालत इतनी खराब है कि हमेशा इसी वजह से हादसे होते हों।

हैरानी व अफसोस तो तब होता है जब बढ़िया, सिक्स या फोर लेन सड़कों पर हादसे होते हैं और कई लोग बेमौत मारे जाते हैं। ऐसी स्थिति में मानवीय लापरवाही या चूक ही हादसे का कारण होती है। ज्यादातर हादसों की वजह तेज रफ्तार होती है। यह कई बार उदघाटित हो चुका है कि राज्य की सड़कों पर सबसे ज्यादा घातक रफ्तार के साथ निजी बसें दौड़ रही हैं। इन्हें चलते फिरते ताबूत भी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। रूपनगर में स्कूटर सवार को निजी बस ने रौंदा या कार ने, यह तो अभी विशेष जांच दल की रिपोर्ट से पूरी तरह तय होगा हालांकि पुलिस ने कई सबूतों व जांच के आधार पर यह निष्कर्ष दिया है कि हादसा कार के कारण हुआ है।

जो भी हो, इस मामले में दूध का दूध पानी का पानी होना ही चाहिए। यह इसलिए और भी जरूरी है क्योंकि जिस बस को हादसे का कारण प्रदर्शनकारी बता रहे हैं वह मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के परिवार के स्वामित्व वाली कंपनी की बताई जाती है। ऐसे मामलों को सियासी रंगत देना भी कतई सही नहीं कहा जा सकता। ऐसा करना तो उन लोगों की भावनाओं से खेलना भी है जिन्होंने अपने परिजन को हादसे में गंवा दिया है। रूपनगर में हादसे के बाद परिजनों के साथ कई दलों के नेता प्रदर्शन करने जा पहुंचे। परिजनों के साथ सहानुभूति जताने व उनकी जायज मांग का समर्थन करने तक तो ठीक है लेकिन अगर उन्हें भड़का कर कई-कई दिन तक शव का अंतिम संस्कार ही न करने के लिए उकसाया जाए तो इसे कतई सही नहीं कहा जा सकता। इस संवेदनशील मामले में पुलिस, सरकार, सियासी दलों व मृतक के परिजनों को भी सोच समझ, संयम व विवेक से हर कदम रखना होगा। (स्थानीय संपादकीय पंजाब)