हरियाणा में पटरी से उतरी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए सरकार लगातार कवायद करती दिख रही है। सालों तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कुछ विशेष नहीं हुआ और इसके परिणामस्वरूप सरकारी सेवाओं पर से आमजन का विश्वास उठ गया। स्थिति यह है कि चिकित्सकों के आधे से अधिक पद खाली हैं और तकनीकी स्टाफ भी पर्याप्त नहीं है। नए चिकित्सक मिल नहीं पा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो कई स्वास्थ्य केंद्रों में एक भी चिकित्सक नहीं है। ऐसे में सरकार ने सरकारी सेवाओं में कार्यरत चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाकर इस कमी को पूरा करने का कुछ प्रयास किया है। इससे रिटायरमेंट दर कम हो जाएगी और तब तक सरकार नए चिकित्सकों की व्यवस्था सरकार कर पाएगी। हालांकि यह स्थायी समाधान नहीं हैं। ऐसे में प्रदेश से पढ़ने वाले मेडिकल छात्रों को आवश्यक तौर पर एक साल के लिए सरकारी अस्पतालों में सेवाएं देने की शर्त जोड़ सरकार ने कुछ वैकल्पिक प्रयास किए हैं। प्रदेश में हर साल 800 चिकित्सक निकलते हैं और ऐसे में करीब इतने पद सरकार के पास रिक्त नहीं होंगे।
यह सही है कि सरकार के यह प्रयास कुछ राहत देंगे लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है कि सरकारी सेवाओं से चिकित्सक जुड़ सकें। यह लक्ष्य फिलहाल काफी कठिन दिख रहा है। ऐसे में सबसे आवश्यक है कि चिकित्सकों को काम करने का पूरा अवसर दे। उन्हें अपनी विशेषज्ञता दिखाने का पर्याप्त मौका तो मिले। सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक अभी भी अतिरिक्त कार्यों में अधिक व्यस्त दिखते हैं। कोई पोस्टमार्टम, कोई कानूनी कार्रवाई में और कोई वीआइपी ड्यूटी में व्यस्त है। ऐसे में आमजन की चिंता ही किसे है। साथ ही चिकित्सक भी ऐसी किसी व्यवस्था में फंसना नहीं चाहते। साथ ही प्रशिक्षित स्टाफ की कमी भी चिकित्सा सुविधाओं की बदहाली का प्रमुख कारण है। ऐसे में आवश्यक है कि सरकार विभिन्न स्तर पर प्रयास करे। डेपुटेशन पर चिकित्सकों को भेजने की व्यवस्था पर सरकार लगाम लगाने के प्रयास में है। इसके साथ ही अन्य पदों की भी भर्ती प्रक्रिया शुरू की जा रही है। निश्चित तौर पर यह प्रयास सार्थक हैं और उनके परिणाम भी सार्थक आने चाहिएं लेकिन आशातीत परिणाम आने में अभी काफी समय लगेगा। साथ ही सबको बेहतर स्वास्थ्य देने के लिए जनभागेदारी बढ़ानी होगी, ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा मित्र बनाने होंगे, तभी आमजन को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकेंगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]