पांच राज्यों के चुनाव परिणाम ने होली से पहले भाजपा कार्यकर्ताओं को जश्न का मौका दिया ही, प्रदेश की राजनीति को नई दिशा दे दी। कई मायने में यह चुनाव हरियाणा पर भी व्यापक असर डालेंगे। भले ही चुनाव परिणाम पड़ोसी राज्यों के हों लेकिन इसका असर प्रदेश की राजनीति पर सीधा पड़ने वाला है। विपक्ष के साथ-साथ पार्टी के अंदर भी विरोध झेल रही मनोहर सरकार के लिए यह जीत संजीवनी से कम नहीं है। पार्टी के भीतर निश्चित तौर पर अब असंतोष कम होगा। प्रदेश में चल रहे आंदोलनों के मद्देनजर विरोधी दल सरकार पर हमलावर हो रहे थे। ऐसी स्थिति में कुछ विधायकों ने पार्टी के भीतर भी सरकार की घेराबंदी तेज कर दी थी। कुछ मामलों में सरकार भी बैकफुट पर आती दिख रही है। इस मोर्चेबंदी में अधिकतर वही विधायक थे जिन्होंने चुनाव के वक्त पार्टी में शामिल होकर भाजपा के चिह्न पर चुनाव लड़ा। पिछले दिनों मुख्यमंत्री के बयान भी यह संकेत दे गए कि विरोधियों की मुहिम असर दिखाने लगी है। अब विरोधियों को अपनी मुहिम के बारे में फिर से सोचना होगा।
यह चुनाव परिणाम इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि जनता अब जातिगत राजनीति को अलविदा कहना चाहती है और जो लोग काम करना चाहते हैं, उन्हें पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। ऐसे में गठन के तीसरे वर्ष में प्रदेश सरकार को भी निर्णय लेने की गति बढ़ानी होगी और अनिर्णय की स्थिति से बाहर आना होगा। जाट आरक्षण मसले पर सरकार किसी भी पक्ष को साध नहीं पाई है। भले ही प्रदेश के कई जाट संगठन पहले से यशपाल मलिक के आंदोलन से दूरी बनाए हों लेकिन सरकार लगातार दबाव में थी। अब सरकार को खुलकर अपनी बात सभी पक्षों को समझानी होगी। लंबित परियोजनाओं पर तेजी से काम करना होगा। सरकार के दो वर्ष पूरा होने के बाद मुख्यमंत्री की अधिकतर घोषणाएं पूरी नहीं हुई हैं। सरकार ने अब इन कार्यों को पूरा करने के लिए 31 मार्च की समय सीमा तय की है और मुख्यमंत्री कार्यालय सीधा इन परियोजनाओं पर नजर रख रहा था। अब यह समय सीमा भी पूरी होने वाली है। सरकार तय सीमा में 80 फीसद भी योजनाएं पूरा करने में सफल हो जाती है तो यह बड़ी उपलब्धि होगी।

 [ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]