वन भूमि पर अवैध कब्जे वालों को हिमाचल उच्च न्यायालय ने बड़ी राहत दी है। यह राहत उन कब्जाधारकों के लिए है, जिन्होंने पांच बीघा से ज्यादा जमीन खुद सरकार को सौंप दी थी। इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की तलवार लटक रही थी। खुद जमीन सरकार को सौंपने के बावजूद ये लोग कानूनी शिकंजे से डरे हुए थे। हालांकि ऐसे कब्जाधारकों की संख्या सौ से कम है। प्रदेश में कई सारे लोगों ने सरकारी जमीन बागीचे लगा रखे हैं। प्रदेश में दस बीघा से अधिक भूमि पर कब्जे को लेकर ढाई हजार से ज्यादा एफआईआर हो चुकी हैं।

अब तक करीब साढ़े नौ सौ मामलों में 867 हेक्टेयर से अधिक भूमि से कब्जा हटाया जा चुका है। अतिक्रमण मामलों में शिमला जिला सबसे आगे है। यहां ऐसे 3280 मामले सामने आए हैं। कुल्लू जिला में 2392, कांगड़ा में 1757, मंडी में 1218, चंबा जिला में 644, सिरमौर में 540 व सोलन में 120 मामले पकड़े गए हैं। हिमाचल में सरकारी भूमि पर कब्जों का मामला खूब गर्माता रहा है। बात चाहे राजस्व विभाग की जमीन पर कब्जे की हो या वन भूमि पर। इन कब्जों को लेकर नीति बनाने की बीच-बीच में कोशिश होती रही है, पर अभी तक ठोस नतीजा सामने नहीं आ पाया है।

पूर्व की भाजपा सरकार के समय अवैध कब्जों को नियमित करने के शपथपत्र लिए गए थे। पर कानूनी अड़चन के कारण उस समय सरकार की मुहिम सिरे नहीं चढ़ पाई थी। उन शपथपत्रों के कारण कई लोग पंचायतों में अपनी नुमाइंदगी गंवा बैठे थे। उसके बाद कई लोग तो चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गए। अवैध कब्जों को छुड़ाने को लेकर प्रशासनिक कार्रवाई भी कई बार संदेह के घेरे में आती है। इनमें प्रभावशाली लोगों पर डर-डर के हाथ डाला जाता रहा है, या डाला ही नहीं जाता है। कुछ जगह पहुंच न रखने वाले लोगों के आवास बरसात आने से पहले भी गिरा दिए गए। प्रशासन चाहता तो बरसात बीतने का इंतजार भी कर सकता था।

आखिर भरी बरसात में ये परिवार कैसे काटते? जैसे-तैसे इन लोगों ने समय काटा। आज भी कई रसूखदार लोग हैं, जो कब्जा जमा बैठे हैं। गरीब आदमियों ने घर या खेती के लिए कब्जा कर रखा होगा, बड़े लोग व्यावसायिक गतिविधियां चला रहे हैं। सरकार को चाहिए कि इन मामलों में एक नीति बनाए। उस नीति के तहत सरकारी जमीन पर किए अवैध कब्जों को नियमित करने या हटाने का फैसला लिया जाए।प्रदेश में सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों के हजारों मामले लंबित हैं। ठोस नीति बनाकर ही इनका हल निकल सकता है।

[हिमाचल संपादकीय]