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ब्लर्ब में
पिछड़े जिले चंबा के भटियात उपमंडल की बैल्ली पंचायत के लोगों ने जो किया, वह यह उन लोगों के लिए भी सबक है, जो सड़क तो चाहते हैं, लेकिन जमीन नहीं देना चाहते
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प्रदेश में विकास के दावे किए जाते हैं और इसमें दोराय नहीं कि सीमित संसाधनों के बावजूद प्रदेश की सरकारें लोगों के हितों को देखते हुए काम कर रही हैं। लेकिन प्रदेश में एक हिमाचल ऐसा भी बसता है, जो विकास की लौ से कोसों दूर है। प्रदेश के हर गांव को विकसित की श्रेणी में लाने की इच्छाशक्ति कहीं सरकारी सुस्ती के कारण पूरी नहीं हो रही तो कहीं लोग खुद विकास के दुश्मन बन रहे हैं। किसी भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है कि लोगों को बेहतर मूलभूत सुविधाएं मिलें। प्रदेश के कई जिलों में विकास के दावे खोखले दिखाई देते हैं। आधुनिकता की चकाचौंध इन गांवों के लोगों तक नहीं पहुंच पाई है। कहीं स्वास्थ्य सुविधा नहीं है तो कहीं परिवहन। अगर सुविधाएं समय रहते मिल जाएं तो उनके परिणाम सुखद होते हैं। विकास के नाम पर जनता से वोट मांगने वाले नेताओं के सामने चंबा जिले के भटियात क्षेत्र के लोगों ने नजीर पेश की है। इसे लोगों का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि प्रदेश के पिछड़े जिले में शुमार चंबा के कई गांवों में आज तक सड़क सुविधा नहीं मिल पाई है। सरकार व लोक निर्माण विभाग की इच्छाशक्ति भी आड़े आ रही है कि इस ओर प्रयास तक नहीं हो पाया है। सरकारी व्यवस्था चरमरा चुकी है लेकिन विकास खंड भटियात की बैल्ली पंचायत के लूणा व भरेरा गांवों के ग्रामीणों ने जज्बा दिखाया है। ग्रामीणों ने लंबे इंतजार के बाद सरकारी सुस्ती से खफा होकर खुद जीप योग्य सड़क बनाकर प्रशासन व सरकार को आईना दिखाया है। लोगों ने यह साबित किया है कि अगर इच्छाशक्ति हो तो कोई भी बाधा पार की जा सकती है। यह उन लोगों के लिए भी एक सबक है जो सड़क तो चाहते हैं, लेकिन अगर बात जमीन देने की आए तो इन्कार कर देते हैं। ये हालात सिर्फ चंबा जिले में ही नहीं हैं बल्कि सिरमौर, कुल्लू, मंडी, किन्नौर व लाहुल-स्पीति में भी कई गांव अब तक सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं। सरकार को प्रदेश में ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित करके सड़कों का निर्माण करने के लिए प्राथमिकता देना चाहिए जहां अभी तक लोग पीठ पर लादकर ही सामान ढोते हैं या फिर किसी बीमार को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए पालकी का सहारा लेना पड़ता है। विकास का पैमाना किसी राजनीतिक दल से जुड़े लोगों के आधार पर न होकर प्रदेशहित में होना चाहिए। जरूरत है ऐसा तंत्र विकसित करने की कि प्रदेश के हर गांव को उसके हिस्से की धूप मिल सके।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]