उपराज्यपाल द्वारा दिल्ली के विकास से जुड़ी 10 महत्वपूर्ण परियोजनाओं को मंजूरी दिया जाना स्वागत योग्य कदम है। इन योजनाओं से दिल्ली की सूरत बदलेगी। जाम की समस्या से मुक्ति मिलेगी, सो अलग। लेकिन योजनाओं को हरी झंडी दिया जाना ही पर्याप्त नहीं है। इन पर गंभीरता से काम भी होना चाहिए। आमतौर पर होता है कि योजनाएं तो बहुत बनती रहती हैं मगर बाद में वे फाइलों में ही धूल फांकती रहती हैं। कहीं राजनीतिक अडं़गेबाजी लग जाती है तो कहीं फंड की कमी आड़े आ जाती है। कहीं विभागीय अनदेखी राह का रोड़ा बन जाता है तो कहीं योजनाएं भ्रष्टाचार का शिकार हो जाती हैं। इसलिए योजनाएं बनाने और उन्हें मंजूरी देने के साथ-साथ उन्हें अमल में लाने की प्रक्रिया में भी ईमानदारी और गंभीरता बरतना अति आवश्यक है।

हालांकि दिल्ली के विकास को गति देने के लिए मौजूदा स्थिति में भी सुधार की अत्यंत जरूरत है। आबादी बहुत ज्यादा होने से दिल्ली का बुनियादी ढांचा पहले ही चरमरा रहा है। ऐसे में जब उसकी नींव ही हिलने लगी हो तो उसके लिए नई-नई योजनाएं भला कितनी कारगर साबित हो पाएंगी, यह भी एक यक्ष प्रश्न है। दिल्ली की आबादी है करीब दो करोड़ जबकि वाहनों की संख्या हो गई है एक करोड़ के पार। ऐसे में जाम मुक्त ट्रैफिक का संचालन सहज नहीं है।

पानी, सीवरेज और कूड़ा निस्तारण की समस्या भी बढ़ती जा रही है। तमाम एजेंसियों द्वारा दबाव बनाए जाने पर भी इस स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है। इसलिए दिल्ली सरकार और नगर निगम दोनों को ही मिलकर इस दिशा में कुछ ठोस उपाय करने चाहिए। सबसे पहले तो दिल्ली की आबादी पर नियंत्रण के लिए कोई योजना बनाई जानी चाहिए। वाहनों की संख्या पर अंकुश लगना चाहिए और पार्किंग की पुख्ता नीति होनी चाहिए। बिजली-पानी, सफाई और आधारभूत ढांचे की व्यवस्था मजबूत की जानी चाहिए। जब तक समस्याओं की जड़ में नहीं जाया जाएगा, तब तक ऊपरी योजनाएं नाकाफी ही साबित होती रहेंगी। इसलिए योजनाएं बनाएं जरूर लेकिन धरातल पर। योजनाएं बनाने के बाद उनके क्रियान्वयन को लेकर भी पुख्ता निगरानी की व्यवस्था की जानी चाहिए।

[संपादकीय दिल्ली]