नगर निगम के रण में 173 उम्मीदवारों का आपराधिक पृष्ठभूमि से होना खासा चिंताजनक है। इनमें से 116 प्रत्याशियों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। एक उम्मीदवार हत्या का आरोपी है तो 15 के खिलाफ हत्या के प्रयास का केस दर्ज है। 23 उम्मीदवार छेड़छाड़ व दुष्कर्म के आरोपी हैं। प्रत्याशियों की यह स्थिति राजनीति में सुधार के सभी दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। हर बार चुनाव से पहले राजनीतिक दल ही राजनीति का अपराधीकरण खत्म करने जैसे दावे करते हैं। दलों की ओर से कहा जाता है कि योग्य, ईमानदार और शिक्षित उम्मीदवारों को ही चुनाव मैदान में खड़ा किया जाएगा, लेकिन समय आने पर सारे दावे धरे के धरे रह जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। निगम चुनावों में 125 प्रत्याशी निरक्षर, जबकि 1403 प्रत्याशी पांचवीं से बारहवीं पास हैं। प्रश्न उठता है कि क्या अपराधी और निरक्षर लोग जनता के सच्चे जनप्रतिनिधि साबित हो पाएंगे?
आज की राजनीति में सुधार बहुत जरूरी है। जब तक राजनीति से अपराधीकरण खत्म नहीं होगा, विकास और बेहतर काम-काज की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसी तरह यह स्पष्ट है कि निरक्षर व्यक्ति से भी अच्छे काम-काज की अपेक्षा नहीं की जा सकती। स्वच्छ छवि वाले पढ़े-लिखे लोग ही राजनीति को स्वच्छ बनाकर विकास की दिशा में कदम आगे बढ़ा सकते हैं। राजनीति में सुधार इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जनप्रतिनिधि समाज में आदर्श की तरह होते हैं। उनका कार्य और व्यवहार मिसाल की तरह होता है। अगर वे अच्छा काम करेंगे तो समाज में भी अच्छी चीजों की शुरुआत होगी। यदि उनका आचरण अंगुली उठाने वाला होगा तो भ्रष्टाचार फैलेगा, विकास की जडें़ नहीं। कई स्तरों पर राजनीति से अपराधियों को दूर रखने की बात कही जा रही है, कुछ कानून भी बने हैं, लेकिन वास्तव में मतदाता के पास सबसे बड़ी ताकत है। होना यह चाहिए कि मतदाता आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को खारिज करें। मतदाता जागरूक हो जाएगा, तो राजनीतिक दल भी ऐसे लोगों को टिकट देने से परहेज करेंगे और अपने आप ही सुधार नजर आने लगेगा।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]