ब्लर्ब ::: निर्माण कार्यों के लिए विशेषज्ञों की राय को अनदेखा नहीं करना चाहिए वरना यह व्यवस्था में छेद कहीं किसी आमजन की जान पर भारी पड़ सकता है।
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किसी भी निर्माण कार्य के लिए सुरक्षा मानकों का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। विकास के नाम पर अंधाधुंध और बेतरतीब निर्माण कार्य हमेशा किसी हादसे का सबब बन सकता है। इसका ताजा उदाहरण चंबा जिले के तीसा में देखने को मिला है। यहां किसी जल विद्युत परियोजना के लिए बनाई जा रही सुरंग के कारण नेरा गांव के धंसने का खतरा बना हुआ है। सुरंग के जिस स्थान पर छेद हुआ है वहां से प्राथमिक स्कूल की दूरी मात्र बीस मीटर है जबकि साथ ही रिहायशी इलाका भी है। स्थानीय लोगों ने निर्माणधीन निजी कंपनी पर अनदेखी का आरोप लगाया है, लिहाजा लोगों का दहशत में आना भी लाजिमी है। हालांकि प्रशासन ने भी त्वरित कार्रवाई करते हुए हादसे के अगले दिन सुरंग का निर्माण कार्य बंद करवा दिया है, लेकिन अगर सुरंग निर्माण के लिए सभी तरह के विशेषज्ञों की राय ली जाती तो शायद सुरंग धंसने की नौबत नहीं आती। एक बात राहत देने वाली रही कि सुरंग के अंदर किसी प्रकार की मानवीय हानि नहीं हुई पर इस हादसे ने अगस्त 2015 में मंडी जिले में टीहरा सुरंग हादसे की यादें ताजा हो गईं। इस सुरंग के निर्माण में एक व्यक्ति को जान गंवानी पड़ी थी, जबकि दो लोगों को कई दिनों के बाद कड़ी मशक्कत के बाद निकाला गया था। यह हादसे व्यवस्था की चेतना को जगाने वाला था लेकिन विडंबना यह है कि इस तरह के हादसों से भी कोई सबक नहीं सीखा जा रहा है। यही वजह है कि चंबा जिले के तीसा में अब सुरंग में छेद हुआ है। विकास के नाम पर नियमों की अनदेखी कतई बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए, चाहे वह किसी प्रोजेक्ट का निर्माण हो या फिर किसी हाईवे के रास्ते की दूरी कम करने के लिए सुरंग निर्माण हो। चंबा जिले में निर्माणाधीन सुरंग के मामले में स्थानीय लोगों का आरोप है कि सुरंग के लिए जरूरी एक व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे सुरंग के बीचों-बीच छेद हो गया। सरकार और प्रशासन को इस संबंध में नियम सख्त करने की जरूरत है। इस तरह के निर्माण कार्य के लिए गठित निगरानी करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही भी तय करनी चाहिए। सुरंग के निर्माण से पहले संबंधित क्षेत्र की भूमि की जांच के बाद ही किसी भी कार्य की अनुमति दी जानी चाहिए। इससे न व्यवस्था में छेद की कोई गुंजाइश रहेगी न और न ही किसी सुरंग में इस तरह छेद होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]