टिहरी में संचालित होने वाली स्वास्थ्य सेवा डॉयल 555 को अन्य जिलों में भी लागू करने की जरूरत है, लेकिन इसके साथ ही दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सकों की तैनाती भी उतनी ही जरूरी है।
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उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की चिंताजनक स्थिति के बीच टिहरी में डॉयल 555 सेवा शुरू करने की सराहना की जानी चाहिए। यदि योजना परवान चढ़ी तो यह प्रयोग अन्य जिलों में आरंभ किया जा सकता है। योजना के तहत पहाड़ के दूर-दराज के लोग फोन पर ही जिला चिकित्सालय के डॉक्टर से परामर्श ले सकेंगे। शायद इससे कुछ हद तक राहत मिल जाए। दरअसल पर्वतीय, विशेषकर दूरस्थ गांवों तक सेवाओं का न पहुंचना हमेशा ही चुनौती का सबब रहा है। आलम यह है कि उत्तरकाशी हो अथवा देहरादून जिले का जौनसार बावर क्षेत्र या पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा, सब जगह समस्या बनी हुई है। टिहरी में स्वास्थ्य केंद्र के बाहर महिला बच्चे को जन्म दे देती है तो चकराता में एंबुलेंस सेवा 108 का सहारा भी नहीं मिल पाता। गौर करने वाली बात यह भी है कि जिस टिहरी जिले में डॉयल 555 सेवा शुरू की जा रही है, वहां 260 पदों के सापेक्ष महज 60 चिकित्सक ही तैनात हैं। यहां तक कि जिला अस्पताल में चिकित्सकों के सात पद रिक्त हैं। प्रदेश में ही सरकारी चिकित्सकों के आधे पद खाली पड़े हैं। तमाम प्रयास के बाद भी दुर्गम क्षेत्रों में डाक्टर तैनात करने के प्रयास परवान ही नहीं चढ़ पाए। डाक्टरों के लिए अलग से स्थानांतरण नीति भी लागू की गई, लेकिन परिणाम सिफर ही रहा। यह हाल तब है जब कि नीति में नई नियुक्ति व प्रमोशन पाने वाले डाक्टरों के लिए दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में दो वर्ष की अनिवार्य सेवा का सख्त प्रावधान रखा गया था। इसके बावजूदप्रावधान के दायरे में आने वाले कई डाक्टर दुर्गम क्षेत्र में तैनाती से रियायत पाने में सफल रहे। दरअसल, सरकारी अस्पतालों में पीएमएचएस संवर्ग के डाक्टरों के करीब ढाई हजार पदों में से डेढ़ हजार रिक्त हैं। दुर्गम क्षेत्रों में जहां स्वास्थ्य केंद्र हैं, ज्यादातर में ताले लटके हैं। कुछ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को पीपीपी मोड में संचालित करके इस समस्या को कुछ हद तक हल करने की कोशिश की गई, मगर इन अस्पतालों में भी अव्यवस्थाओं व लापरवाही के मामले सामने आने लगे। पहाड़ की अपनी चुनौतियां हैं और तस्वीर के इस पहलू को नजरंदाज कर परिस्थितियों को नहीं बदला जा सकता। सच्चाई से मुंह चुराने की बजाए उसका सामना करना चाहिए। जरूरत है पर्वतीय क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के विकास की। सुविधाएं होंगी तो कर्मचारी और अधिकारी भी वहां रहेंगे। पलायन की वास्तविकता भी यही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नई सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]