अच्छी खबर आई कि अगले महीने बिहार के सबसे बड़े एवं प्रतिष्ठित अस्पताल पीएमसीएच में एमआरआइ सुविधा उपलब्ध हो जाएगी, यद्यपि बहुत लोग यह जानकार चौंके भी होंगे कि पीएमसीएच जैसे चिकित्सा शिक्षा संस्थान एवं चिकित्सालय में यह सुविधा अब तक उपलब्ध नहीं थी। बहरहाल, अब उन मरीजों को भी अपेक्षाकृत नियंत्रित फीस पर यह महत्वपूर्ण जांच सुविधा उपलब्ध होगी जो निजी केंद्रों की भारी फीस के कारण यह जांच कराने में असमर्थ थे। उम्मीद की जानी चाहिए कि पीएमसीएच के बाद पटना तथा राज्य के अन्य शहरों के प्रमुख अस्पतालों में भी यह सुविधा शीघ्र ही उपलब्ध कराई जाएगी ताकि अधिकाधिक लोग इसका लाभ प्राप्त कर सकें। यह जगजाहिर है कि जांच के नाम पर निजी अस्पताल मरीजों का जमकर दोहन करते हैं। इसे देखते हुए सरकारी व अर्ध सरकारी चिकित्सा संस्थानों में ज्यादा से ज्यादा जांचों की सुविधा उपलब्ध रहनी चाहिए ताकि मरीजों को वाजिब फीस पर इनका लाभ मिल सके। चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के साथ ही इनसे संबंधित उपकरणों के रखरखाव की भी पारदर्शी नीति होनी चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि सरकारी अस्पतालों में महंगी मशीनें खरीद तो ली जाती हैं लेकिन समुचित रखरखाव के अभाव में कुछ दिन बाद ही काम करना बंद कर देती हैं। दूसरी तरफ निजी अस्पतालों में शायद ही कभी ऐसी समस्या होती है। ऐसी घटनाओं से सरकारी अस्पतालों के प्रबंधन की कार्यशैली एवं मंशा पर तरह-तरह के सवाल भी उठते हैं। अच्छा होगा कि जांच उपकरणों के रखरखाव के लिए बाकायदा जिम्मेदारी एवं जवाबदेही निर्धारित की जाए ताकि संबंधित अधिकारी उपकरणों की क्रियाशीलता के लिए सचेष्ट रहें।

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हर दिन नए अनुसंधान हो रहे हैं। कारपोरेट अस्पतालों में ऐसी सुविधाओं का लाभ तुरंत मिलने लगता है लेकिन सरकारी अस्पतालों को इसके लिए दशकों इंतजार करना पड़ता है। यह गलत नीति है तथा मरीजों के साथ अन्याय है। सरकार की जिम्मेदारी है कि अपने नागरिकों को स्वस्थ एवं दीर्घजीवी बनाने के लिए हर संभव आधुनिकतम सुविधा उपलब्ध कराए। विडंबना है कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर अपने मरीजों को निजी केंद्रों में जांच कराने व दवाएं खरीदने के लिए बाध्य करते हैं। सरकारी अस्पतालों के आउटडोर में डॉक्टर की टेबल पर निजी अस्पतालों व जांच केंद्रों के प्रिस्क्रिप्शन पैड रखे रहते हैं जिन पर मरीजों को जांचें व दवाएं लिखी जाती हैं। यह सब खुल्लमखुल्ला होता है। मरीज तो लाचारी में यह सब सहते हैं लेकिन इसे रोकने के लिए जिम्मेदार तंत्र की क्या मजबूरी है? सबको पता है कि बड़े सरकारी अस्पतालों के परिसर में निजी अस्पतालों के दलाल घूमते रहते हैं तथा मरीजों को बेहतर एवं सस्ते इलाज का झांसा देकर निजी अस्पताल पहुंचा देते हैं। चिकित्सा जैसे पेशे में ऐसा गोरखधंधा लज्जाजनक है, लेकिन दुर्भाग्य है कि चिकित्सकों के संगठन भी इस पर रोक के लिए कोई पहल नहीं करते। इस सबका खामियाजा अन्तत: उन मरीजों को भुगतना पड़ता है जो तमाम उम्मीदें लेकर बड़े अस्पतालों में आते हैं। राज्य सरकार को इस दिशा में गहराई से विचार करके एक ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे आम मरीजों को सरकारी चिकित्सा सेवा का अधिकतम लाभ मिल सके। लोक कल्याणकारी शासन व्यवस्था में शिक्षा, चिकित्सा और भोजन की व्यवस्था करना सरकार का परमधर्म है। किसी भी परिस्थिति में इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]