प्रदेश में गर्भवती महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में कमी विभागीय कार्यशैली की स्थिति को बताती है। केंद्र और प्रदेश सरकार की तमाम योजनाओं के बावजूद इस दिशा में ठोस कार्य न हो पाना प्रशासनिक क्षमताओं पर भी सवाल खड़े करता है।
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प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का लगातार गिरता स्तर बेहद चिंताजनक है। हालत यह है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद स्वास्थ्य सेवाएं पटरी पर नहीं आ पाई हैं। विशेषकर महिला स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर लगातार गिरता ही जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य कल्याण के सर्वे पर नजर डालें तो हालात दिन ब दिन बिगड़ते ही जा रहे हैं। स्थिति यह है कि करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद एनीमिया की समस्या कम होने की बजाय बढ़ रही है। यहां तक कि सरकारी अस्पताल अब गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी नार्मल नहीं बल्कि सिजेरियन करने पर ज्यादा जोर देने लगे हैं। साफ है कि सरकारी अस्पताल अब अपनी जिम्मेदारियों से भागते हुए अपनी सुविधानुसार इलाज के तरीके अपना रहे हैं। देखा जाए तो राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं पटरी से उतरी रही। विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में तो अभी तक कोई भी सरकार डाक्टर नहीं पहुंचा पाई है। यहां सरकारी अस्पताल फार्मेसिस्ट के भरोसे ही चल रहे हैं। सबसे बुरी हालत महिला चिकित्सा सुविधाओं को लेकर है। यहां अदद महिला चिकित्सकों के अभाव में अभी भी गर्भवती महिलाएं घरों पर ही प्रसव करने को मजबूर हैंं। असुरक्षित प्रसव में अप्रिय घटना का अंदेशा हमेशा ही बना रहता है। बावजूद इसके इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। जो महिलाएं शहरों में स्थित राजकीय अस्पतालों तक पहुंचती हैं, वहां भी अब उन्हें समुचित सुविधाएं नहीं मिल पाती। स्थिति यह है कि प्रदेश में एनिमिक गर्भवती महिलाओं की संख्या लगातार बढऩे लगी है। तीन सालों में यह आंकड़ा 50 हजार से बढ़कर सवा लाख तक पहुंच गया है। वह भी तब जब आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं को समुचित प्रोटीन व आयरन युक्त आहार उपलब्ध कराया जा रहा है। यहां तक कि स्तनपान को लेकर भी जागरूकता की बेहद कमी देखी गई है। अभी केवल 27.8 प्रतिशत महिलाएं ही बच्चों के जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान करा रही है जबकि पहले यह संख्या तकरीबन 33 फीसद थी। गर्भवती महिलाओं के टीकाकरण में भी विभाग खासा लापरवाह नजर आ रहा है। महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति विभागों की इस लापरवाही को बेहद गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में त्वरित व उचित कदम उठाए।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]