राज्य के विकास का राजग सरकार का उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब केंद्र से मिलने वाली सहायता में सामंजस्य का ख्याल रखा जाए। विकास को गति देने के लिए यह निहायत जरूरी है। फिलहाल राज्य सरकार के समक्ष सवा तीन लाख नियोजित शिक्षकों के चार महीने के वेतन भुगतान का बड़ा संकट है। इन शिक्षकों का वेतन भुगतान सर्व शिक्षा अभियान के मद से किया जाता है। केंद्र सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में अभियान के मद में बिहार के लिए साढ़े दस हजार करोड़ रुपये का बजट स्वीकृत किया है। पहली किस्त के रूप में इस राशि में महज एक हजार आठ सौ पचास करोड़ रुपये ही राज्य को मिले हैं। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के अनुसार नियोजित शिक्षकों को जून महीने तक का वेतन दिया गया है। यानी फिलहाल चार माह के वेतन की राशि का सवाल है। ऐसा नहीं कि राज्य सरकार को यह राशि केंद्र द्वारा नहीं दिए जाने के पीछे कोई वाजिब कारण है। राशि के लिए राज्य सरकार द्वारा बार-बार पत्रचार किया जा रहा है, लेकिन केंद्र सरकार की सक्रियता न होने की वजह से दूसरी किस्त अटकी पड़ी है। ऐसी नौबत कार्य संस्कृति पर भी सवाल खड़े करती है। इस मामले में शासन के स्तर पर पहल की जानी चाहिए। लंबे समय से वेतन का इंतजार कर रहे नियोजित शिक्षक अब आंदोलन की चेतावनी देने लगे हैं। हालांकि राज्य सरकार इस स्थिति को टालने के उपाय में जुट गई है। शिक्षा विभाग ने राज्य सरकार से इन शिक्षकों के वेतन भुगतान के लिए 2600 करोड़ रुपये की मांग की है। इस राशि के लिए वित्त विभाग और मंत्रिपरिषद की मंजूरी चाहिए। अवांछित हालात को टालने के लिए इस प्रक्रिया को शीघ्र पूरा कर लेना ही बेहतर होगा। केंद्र और राज्य के बीच तालमेल के लिए जरूरी है कि प्रत्येक मसले पर सिर्फ विभागीय ही नहीं, बल्कि शासन के स्तर पर भी बातचीत हो। निश्चित रूप से इसका फलाफल निकलेगा। इधर, समान काम समान वेतन के लिए भी नियोजित शिक्षकों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। शिक्षकों के पक्ष में हाईकोर्ट के निर्णय के बाद शिक्षक संघों ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। फरवरी से स्कूलों में तालाबंदी की चेतावनी दी है। मैटिक और इंटर की परीक्षा तथा मूल्यांकन को भी प्रभावित करने की चेतावनी दी है। इन हालातों से निबटने में राज्य सरकार की कुशलता की परख होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]