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ब्लर्ब में
करंट की चपेट में दोनों हाथ गंवाने वाले बहादुर बच्चे रजत ने हिम्मत नहीं हारी। दसवीं में 613 अंक हासिल कर उसने दिखा दिया कि हाथों के बिना भी जीवन में रंग भर सकते हैं
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दिव्यांग होना कोई अभिशाप नहीं है और न ही किसी के पूर्वजन्म के पाप की सजा है। सच यह है कि इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति संपूर्ण नहीं है। कोई न कोई कमी हर इंसान में मौजूद होती है। कुछ दिखती हैं और कुछ छिपी रह जाती हैं। अपनी कमियों को समझकर उस पर विजय पाना ही हर जिंदगी का लक्ष्य होना चाहिए। इंसान वही है जो खूबियों का पलड़ा भारी कर कमियों को पछाड़ देता है। सामाजिक धारणाओं व संकुचित सोच के कारण शारीरिक अक्षमता के शिकार लोगों को समाज में खुद की समस्याओं के अलावा कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन हिम्मत और खुद पर विश्वास कर अगर कदम बढ़ाए जाएं तो कुछ भी पाना असंभव नहीं है। यह साबित कर दिखाया है, आनी के रजत कुमार ने। करंट की चपेट में दोनों हाथ गंवाने के बावजूद इस बहादुर बच्चे ने हिम्मत नहीं हारी। दसवीं की परीक्षा में 700 में से 613 अंक हासिल कर बता दिया कि हाथों के बिना भी जिंदगी में रंग भरे जा सकते हैं। इन्हें पूरा करने के लिए अगर कुछ चाहिए तो वह है हौसला। दिव्यांग रजत ने दर्दनाक हादसे के बाद पैरों व मुंह से पेन, ब्रश, चम्मच पकडऩे की प्रेक्टिस शुरू कर दी थी। हैरानी की बात है कि रजत ने परीक्षाओं में कभी किसी की मदद नहीं ली और अपना पेपर मुंह में पेन पकड़ कर दिया। वह केवल पेज पलटने या अन्य कार्यों के लिए दूसरों का सहयोग लेता था। रजत ने ऐसी मिसाल पेश की है, जो दूसरों को प्रेरणा देगी। प्रदेश के दिव्यांग बच्चों ने पहले भी विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभा साबित करके दिखाई है। पैरालंपिक खेलों में प्रदेश के बच्चों ने मेडल हासिल कर दिखाया था कि उन्हें बेचारा न समझा जाए बल्कि प्रोत्साहन मिलना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि शारीरिक कमजोरी किसी प्रतिभा की राह की बाधा न बन पाए। समाज के सहयोग व प्रोत्साहन से इनके जीवन में भी खुशियों के रंग भरे जा सकते हैं। इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि दिव्यांगता कष्टदायक स्थिति है। इसकी पीड़ा वहीं समझ सकता है, जो उसका दर्द झेल रहा हो। लेकिन हमारी सोच इस स्थिति को उस समय और कष्टदायक बना देती है, जब उन्हें कमतर आंका जाता है। अगर कोई यह मान ले कि वह किसी काम का नहीं तो उसका जीवन निरर्थक बन जाएगा। मन यदि कमजोर हुआ तो शरीरबल से समर्थ व्यक्ति भी किसी कार्य को कर पाने में असफल हो सकता है। इसलिए शारीरिक पूर्णता की तुलना में हमें मानसिक समर्थता पर अधिक भरोसा करना चाहिए। बहादुर रजत के जज्बे को सलाम।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]